सिर्फ मोदी लहर या बदल रहा है मतदाताओं का मिजाज ?
गत दिवस बहु प्रतिक्षित पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए । उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी को व्यापक सफलता हासिल हुई ।उत्तर प्रदेश के कुल 403 विधानसभा सीटों में से 325 सीट पर भाजपा गठबंधन ने अपना कब्जा जमाया वहीं उत्तराखंड में भी कुल 70 विधानसभा सीटों में से 57 सीटों पर कब्जा जमाकर अपना परचम लहरा दिया लेकिन पंजाब ने भारतीय जनता पार्टी तथा शिरोमणि अकाली दल को सिरे से खारिज कर दिया । पीछले दस साल से सत्ता पर आसीन अकाली दल भाजपा गठबंधन तीसरे नम्बर पर रही ।कांग्रेस 77 सीटों पर कब्जा जमाकर अव्वल रही तथा 20 सीटों के साथ आम आदमी पार्टी को भी दूसरे नम्बर से संतोष करना पड़ा । वहीं गोवा में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा तथा काग्रेस 17 सीटों के साथ अव्वल रही , भाजपा को सिर्फ 13 सीटों से संतोष करना पड़ा । प्रथम दृष्टया तो गोवा त्रिशंकु विधानसभा की ओर अग्रसर है लेकिन सीटों के जोड़ तोड़ के बाद स्थिति कैसी बनती है यह देखना दिलचस्प होगा । मणिपुर में भी भाजपा 21 सीटों के साथ दूसरे नम्बर पर रही लेकिन इन सभी सीटों पर भाजपा ने पहली बार कब्जा जमाया है तो अगर प्रदर्शन की दृष्टि से अवलोकन करे तो भारतीय जनता पार्टी की यह एक बड़ी जीत है
अब अगर सभी राज्यों के चुनाव परिणाम खास कर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा मणिपुर के चुनाव परिणामो का अवलोकन करे तो यह शत प्रतिशत मोदी लहर की तरफ इशारा करते है । खासकर कर उत्तर प्रदेश में जहाँ प्रधानमंत्री ने रैलियों के साथ तीन दिन तक रूक कर रोड शो भी किया इस व्यापक जीत के बाद कोई बहुत आसानी से कह सकता है कि यह वन मैन शो था और मोदी लहर में विपक्षी चारो खाने चित हो गए लेकिन जरूरत है जनता के इस फैसले के बारीक विश्लेषण करने की । क्या चुनाव के नतीजे सिर्फ सिर्फ मोदी के नाम पर आए है ? या अब वोट देने के कारण का चिंतन करते वक्त मतदाताओं का मिजाज बदला है ?
नरेन्द्र मोदी जबसे सत्ता में आए है उनकी छवि निरंतर कार्यशील रहने वाले नेता की रही है । जब वो खुद कहते है कि मैं प्रति दिन सिर्फ 3 से 4 घंटे सोता हूँ और यह सच्चाई भी है कि जबसे उन्होंने कार्यभार संभाला है कभी छुट्टी नहीं ली साथ वो सर्जिकल स्ट्राइक तथा नोट बंदी जैसे कठोर निर्णय लेकर अपनी छवि एक असाधारण निर्णय लेने वाले प्रशासक की भी बना ली है । जिसका विरोध निरंतर विपक्ष करता रहा है लेकिन जनता ने खूब सराहा है और निश्चित रूप से नरेन्द्र मोदी को अपनी निरंतर कार्यशील रहने वाली छवि का फायदा भी मिल रहा है । अगर उत्तर प्रदेश की बात करे तो हमेशा से यहाँ धुर्वीकरण की राजनीति ही वोट हासिल करने का मुख्य आधार रहा है । जहाँ बसपा दलित वोट को अपना कैडर मान कर चलती है । वहीं पीछड़े वर्ग के वोटो पर हमेशा से समाजवादी पार्टी की दावेदारी रही है तथा माना जाता रहा है कि दोनों दलों में से जो भी मुस्लिम वोट हासिल कर लेगा उसका जीतने लगभग तय है वहीं बाबरी मस्जिद विवाद के बाद भारतीय जनता पार्टी हिन्दु वोट के धुर्वीकरण कर अपनी जीत तलाशती रही है । लेकिन नरेन्द्र मोदी ने आते ही सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ इस मिथ्य को तोड़ने की कोशिश की है कि भाजपा सिर्फ एक हिंदूवादी पार्टी है । जिसका फायदा मिल रहा है ।
उत्तर प्रदेश के चुनाव में अगर सभी राजनीतिक पार्टी के टिकट बंटवारे का अवलोकन करे तो स्पष्ट दिखता है कि सभी राजनीतिक दल ने अपने अपने उम्मीदवार पूर्व में भुना कर आजमाए जा चुके नुस्खे के अनुसार ही दिए थे लेकिन तो चुनाव के नतीजे आए है वो चौकाने वाले है । जिससे स्पष्ट महसूस होता है कि अब जनता किसी जातिगत और धार्मिक समीकरण से इतर अपने विवेक से विकास तथा उनके खुद के जीवन में क्या सकारात्मक परिवर्तन आ सकते है उस आधार पर मत प्रयोग कर रही है ।
उत्तर प्रदेश में यदि जातिगत समीकरण की बात करे तो सेन्ट्रल उत्तर प्रदेश में जहाँ 98 विधानसभा सीटो पर यादव मतदाता की बहुलता है वहा भी तकरीबन 35 सीट भाजपा के खाते में गए है
। यह हमेशा से माना जाता रहा है कि मुस्लिम मतदाता भाजपा को वोट नहीं करते लेकिन उत्तर प्रदेश में वैसे विधानसभा क्षेत्र जहाँ मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 40 से 50 प्रतिशत है वैसे कुल 37 सीटों में से भाजपा ने 24 सीटो पर कब्जा जमाया है । अतः एक तरह से देखे तो उत्तर प्रदेश में जातिगत और धार्मिक धुर्वीकरण दोनों ही फेल रहे हैं और जनता ने अपने विवेक से मतदान का प्रयोग किया ।
निसंदेह अगर सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बात करे तो मोदी के नाम पर मतदाताओं का रूझान तो रहा ही है लेकिन इस बार मतदाताओं ने विकास को तथा ट्रिपल तालाक जैसे मुद्दों पर भी मुस्लिम महिलाओं ने भी भाजपा का साथ दिया है । इसमें कोई संदेह नहीं है।
अगर पंजाब विधान सभा की बात करे तो जो मोदी मैजिक ने उत्तर प्रदेश में जो धमाल मचा दिया वही पंजाब में बिल्कुल फेल रही क्योंकि पीछले 10 साल से सत्ता के सिंहासन पर काबिज आकाली दल भाजपा गठबंधन के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल पर ड्रग तस्करों को संरक्षण देने का आरोप लगते रहे है और इससे भी दुखद यह कि वो विपक्ष के विरोध का मुहँ तोड़ जबाब देने में असक्षम रहे है । उनपर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते रहे है । इसलिए इसमे कोई संदेह नहीं कि जिस तरह भ्रष्टाचार में संलिप्त काग्रेस के साथ ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की नाव डूबो दी है ठीक वैसे ही आकाली दल का साथ भाजपा को पंजाब में ले डूबी है ।
ठीक वैसे ही उत्तराखंड में हरीश रावत पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे और विपक्ष लगातार जमकर न सिर्फ विरोध करता रहा अपितु जन जन तक यह बात पहुंचाने में सफल रहा जिसके प्रभाव यह पड़ा कि खुद उनके विधायक बागी हो गए । ऐसी हालत में फिर जनता ने अपने विवेक दिखाते हुए मिजाज बदला और हरीश रावत को बुरी तरह से सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
गोवा में कमजोर मुख्य मंत्री लक्ष्मीकांत संगठन नहीं संभाल सके तथा पारिकर की तरह सबको एकजुट रखने में सफल नहीं हुए तथा बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गए । यहाँ भी मतदाताओं ने सिर्फ अपने विवेक से काम लिया और कोई मोदी लहर देखने को नहीं मिली । मणिपुर में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला । लेकिन इन सारी बातों से इतर एक बात और भी महत्वपूर्ण रही कि तकरीबन सभी बाहुबलियों को जनता ने बाहर का रास्ता दिखाया ।
अतः यदि सभी प्रदेशों के चुनाव के परिणामों का बारीक विश्लेषण करे तो बहुत स्पष्ट है कि अब मतदाता धीरे धीरे किसी जातिगत और धार्मिक समीकरण से इतर स्वविवेक से सिर्फ किसी के चेहरे यह नाम के लहर पर वोट नहीं कर रहे अपितु अब मतदाता प्रत्याशियों को अपने कसौटी पर कसकर ही मतदान कर रहे है । ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पांच राज्यों के चुनाव परिणाम सिर्फ मोदी लहर का प्रभाव नहीं है अपितु मतदाताओं ने भी अपना मिजाज बदला है ।
अमित कु.अम्बष्ट ” आमिली ”