राजनीति

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में भाजपा की ऐतिहासिक जीत के मायने

आखिरकार 11 मार्च 2017 का वह ऐतिहासिक क्षण उप्र व उत्तराखंड के लिए आ ही गया जबकि सभी कयासों व अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने उप्र में 14 वर्षों के बाद विजय हासिल की। उप्र के विधानसभा चुनाव परिणाम कई मायनों में काफी ऐतिहासिक व देश की राजनीति में व्यापक परिवर्तनों का संकेत देने वाले हैं। इन चुनावों में यदि सबसे बड़ी पराजय हुई है तो वह है बसपा सुप्रीमो मायावती की जिन्होंने केवल दलित और मुस्लिम तुष्टीकरण और गठजोड़ के सहारे और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ महाअभियान के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश की थी। इन चुनावों में निश्चय ही पीएम मोदी की लहर ने गजब का काम कर दिखाया है। हालांकि पंजाब, मणिपुर व गोवा में भाजपा को कुछ सीमा तक हार का सामना करना पड़ गया है। लेकिन इस बार पूरे देश ही नहीं अपितु पूरे विश्व की निगाहें उप्र के परिणामों पर ही लगी थी ।
उप्र व उत्तराखंड की जनता ने निश्चय ही अभूतपूर्व करिश्मा कर दिखाया है । उप्र की जनता ने जातिवाद, परिवारवाद व मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति को पूरी तरह से नकार दिया है। आज की तारीख में प्रदेश में मुस्लिम तुष्टीरण की राजनीति करने वाले लोग व दल काफी हैरान व परेशान हैं कि आखिरकार भाजपा को मुस्लिम बहुल इलाकों में भी इतनी सफलता कैसे मिल गयी ? राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि तीन तलाक का मुददा भी काम कर गया है। वहीं दूसरी ओर जब पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सभी मोदी विरोधी दलों के पास विरोध करने के लिए वैचारिक तर्कों का अभाव हो गया तब ये सभी लोग एक साथ मिलकर पीएम मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों का जमकर प्रयोग करने लग गये। इसमें पीएम मोदी को गधा , चोर, पाकेटमार तथा चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले पीएम मोदी को जवानों के ख्ूान का सौदागर तक कहा गया था लेकिन पीएम मोदी अपने मिशन में लगातार आगे बढ़ते रहे जिसका नतीजा आ चुका है तथा यूपी व उत्तराखंड का पूरा आकाश केसरिया हो गया है।
विगत दिनों सबसे बड़ी बात यह यह हुई है कि भारतीय जनता पार्टी अब मणिपुर व गोवा में भी सरकार बनाने में कामयाब हो गयी है। मणिपुर भाजपा के लिए सबसे बडी सफलता दिलाने वाला राज्य मिल गया है। अब पूर्वाेत्तर में भी भाजपा की जड़ें गहरी होती जा रही हैं। अब इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि आने वाले दिनों में असोम, अरूणाचंल व मणिपुर के बाद मेघालय व मिजोरम में भी सफलता कायम करने में सफल हो जाये। आज प्रदेश ही नहीं अपितु पूरेदेशभर के विरोधियों को भाजपा की जीत से हैरानी तो हो रही है, वहीं दूसरी ओर उनकी रातों की नींद ही खराब हो गयी है। जो लोग भाजपा को चुनावी मैदान में नहीं हरा सके हैं उन सभी दलों को अब ईवीएम मशीनों में ही खोट दिखलायी पड़ने लग गया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने सबसे पहले मशीनों के मतदान पर सवालिया निशान खड़ा किया, फिर उसके बाद उनको केजरीवाल और अखिलेश यादव को भी समर्थन मिल गया। यह सभी दल इस बात से हैरान हो रहे हैं कि आखिर भाजपा को मुस्लिम बहुल व आरक्षित सीटों पर इतनी शानदार सफलता कैसे मिल गयी। आखिर अभी कइ राज्यों में चुनाव हुए जिसमें बिहार, दिल्ली, पं बगाल, तमिलनाड, केरल सहित कई राज्यों व विगत लोकसभा चुनावों में भी ईवीएम के माध्यम से चुनाव कराये गये तब इन दलों के लिए यह मशीनें सही थीं। यह बात अवश्य है कि 2009 में लोकसभा चुनाव में पराजित होने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम मशीनों पर सवालिया निशान उठाया था।
सबसे खास बात यह है कि मोदी विरोधियों को पीएम मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हर काम में खोट ही दिखलायी देगी। जब पीएम मोदी ने तीन दिन तक वाराणसी में डेरा डाला तभी विरोधियों ने उन पर तंज कसने शुरू कर दिये थे कि एक पीएम को अपने संसदीय क्षेत्र में विजय पताका फहराने के लिए तीन दिन रहना पड़ रहा है। जब पीएम मोदी की रैलियों व जनसभाओं में जनज्वार उमड़ रहा था तब भी यह सभी दल उपस्थित जनसमूह के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे जिसका परिणाम आज सबके सामने है।
आज भाजपा की जीत के लिए सबसे बड़ा कारण यह भी है कि भाजपा को विगत तीन माह में जुमलेबाज पार्टी, नेता विहीन दल, तीन साल में कोई काम न कर पाने वाले दल के रूप में अलंकृत किया गया था। जिसका लाभ आज भाजपा व सहयोगी दलों को मिल रहा है। विगत 27 सालों से किसी न किसी प्रकार से सपा, बसपा और कांग्रेस ही प्रदेश में राज कर रहे थे लेकिन यह सभी दल अपनी नाकामियों को छिपाते हुए प्रदेश के बिगड़ते हुए हालातों के लिए पीएम मोदी व भाजपा को जिम्मेदार मान रहे थे। सबसे बड़ी राहत की बात यह मिली हे कि एग्जिट पोलों के तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बिना किसी देरी के अपनी बुआ के साथ प्यार की पेंगें बढ़ानी शुरू कर दी थीं जिसका अब अगले पांच साल तक प्रदेश की जनता जनता जर्नादन ने अंत कर दिया है। अब यह दल कोई खुराफात करने के हालात में नहीं हैं। इन सभी दलों को इसी बात से परेशानी हो रही है। सपा का काम बोल गया और हाथी का काम दिख गया। इन चुनावों में सपा और बसपा जिस प्रकार से हाशिये में चले गये हैं उससे साफ पता चल रहा है कि इस बार पिछड़ी और दलित जातियों ने भाजपा को एकमुश्त वोट दिया है। चुनावों में हर बार अपनी दादागिरी दिखाने वाले अजित सिंह सरीखे क्षत्रपों का तो राजनैतिक कैरियर ही ध्वस्त कर दिया है। सबसे बड़ा नुकसान तो बसपा सुप्रीमो माावती का होने जा रहा है जिनको अब राज्यसभा में भी जगह नहीं मिलने वाली और न ही विधानपरिषद में जाकर हल्ला मचा पाने की स्थिति में होंगी। अब आगे उनका भविष्य सबसे अंधकारमय हो गया है। यहां तक कि अब उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने सहित उनके पिछले कार्यकाल में हुए निर्माण व घोटालों की यदि नयी सरकार तेजी से जांच करवाती है तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है और धर्म व जाति के आधार पर वोट मांगने के कारण उनका दल प्रतिबंधित भी हो सकता है। बसपा में चुनाव के बाद एक बार फिर भगदड़ मच सकती है जो कि शुरू भी हो गयी है। वहीं समाजवादियों का महातमाशा फिर शुरू हो सकता है तथा कई बड़े गुंडों को जेल की यात्रा करनी पड़ सकती है। यही कारण है कि आज प्रदेश को विगत 27 साल से अपने आप से नचाने वले दलों व नेताओं के हाथों से तोते उड़े हुए हैं तथा उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है आखिर यह सब कैसे और क्यों हो गया है।
सबसे खास बात यह हो रही है कि अब भाजपा के पास राज्यसभा में अप्रैल 2018 में पूर्ण बहुमत हो जायेगा तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भी भाजपा का ही हो जायेगा। पीएम नरेंद्र मोदी अब आने वाले दिनों में चिंतामुक्त होकर काम कर सकेंगे और विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं रह जायेगा। राज्यसभा में बहुमत आ जाने के बाद अब भाजपा सरकार बहुत सारे संशोधन विधेयकों को भी आसानी से पारित करवा लेगी जिसमें महिला आरक्षण जैसे बिल भी शामिल हैं। वहीं दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि अब अयोध्या व उप्र की जनता सबसे पहले राममंदिर निर्माण में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए काम मांगेगी तथा अयोध्या विवाद का हमेशा के लिए समापन करने के लिए अब कोई बहाना नहीं चलेगा। अगर भाजपा को लोकसभा 2019 में बंपर सीटे हासिल करनी हैं तो कम से कम सर्वोच्च न्यायालय से राम मंदिर के हक में और तीन तलाक के खिलाफ ऐतिहासिक फैसला करवाना ही होगा।

मृत्युंजय दीक्षित