हास्य व्यंग्य कविता : कैरेक्टर व कुंडली
वर-वधू दोनों पक्षों को संबंधी बनने की प्रबल इच्छा थी।
बस लड़के व लड़की से उन्हें ग्रीन सिगनल मिलने की प्रतीक्षा थी।।
कन्या के मन मे हुई थोड़ी जिज्ञासा।
जानना चाही वर के व्यक्तित्व की परिभाषा।।
लड़के ने शांत भाव से अपने बारे मे बतलाया
“सरकारी संस्थान मे मुलाजिम हूं
बीस हजार की तनख्वाह पाता हूं।
पहली तारीख को उठाता हूं ।
आखिरी तक में खा जाता हूं।।
शराब सिगरेट के लिए ‘जी ललचाए रहा ना जाए’ एलपेनलीबे बन जाता हूं।
कुछ मीठा हो जाए डेयरी मिल्क के लिए
यदा-कदा बदनाम मुन्नी की गलियों मे चला जाता हूं।।
अब क्लोरोमिंट की तरह जुबान पर लगाम मत लगाओ।
मेरी छोड़ कुछ अपने बारे मे भी बतलाओ”।
कन्या थोड़ी मुस्काई सकुचाई धीरे से बोली
“मेरे विचार भी ‘ऐसी आजादी और कहाँ’ की तरह स्वच्छंद है
मेरी सेवा एयरटेल नेटवर्क की तरह हर होटल में उपलब्ध है।
मेरी योग्यता पर कतई संदेह ना करें
घड़ी डिटर्जेंट की तरह ‘पहले इस्तेमाल करें फिर विश्वास करें’।”
सुनकर दोनों की वार्ता सभी बोल पड़े
“वाह! कैरेक्टर व कुंडली का संजोग क्या खूब प्रभु ने मिलाई।
ये तो है इक दूजे के लिए
“बधाई हो बधाई”।।
@विनोद कुमार विक्की