सामाजिक

व्यवहारिकता में पिछड़ जाते गूगली विद्वान

आज की नई पीढ़ी ज्ञान का भंडार है। गूगल की दुनिया में आँख खोलने वाले भावी कर्णधार अधिकांशतः संपूर्ण ज्ञान कंप्यूटर और मोबाइल की सहायता से इंटरनेट से अर्जित करते हैं। इनके गूगल ज्ञान को देखकर बड़े बड़े विद्वान भी दाँतो तले अपनी उंगली दबा लेते हैं। यह ज्ञान इनकी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के साथ साथ आधुनिक ज्ञानोपार्जन के फायदे भी दर्शाता है। कोई भी प्रश्न मन में उत्पन्न हुआ नहीं कि इन्टरनेट से बस ऊंगलियाँ और अंगूठे से उत्तर पाकर अपनी जिज्ञासा पूर्ण कर सकते हैं। अब बच्चों को अपने प्रश्नों को घर के बडों के सामने नहीं रखना पड़ता। याद कीजिये अपना बचपन जब आप प्रश्नों को लेकर अपने बड़ो के सामने जाते थे तो कभी आपको अपने प्रश्नों का उत्तर कभी मिलता था, कभी नहीं मिल पाता था और कभी-कभी तो प्रश्नों के उत्तर स्वरुप डांट खानी पड़ती थी। कुछ प्रश्न तो बड़ो के लिए भी बस प्रश्न ही थे; उन्हें भी उत्तर नहीं पता था। पर गूगल ने यह मुश्किल हमेशा के लिए समाप्त कर दी है। गूगल अब हर प्रश्न का उत्तर है। हम दिन पर दिन अब गूगल पर निर्भरशील होते जा रहे हैं। अगर किसी कारणवश इन्टरनेट बंद हो जाये तो प्रतीत होता है जैसे स्वासों पर ही संकट आ गया है।

ज्ञानवर्धक गूगल से हम एक छत के नीचे रह रहे अपने परिवार से भी उतनी बातें नहीं करते हैं जितनी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर करते हैं। अपनी बातें घरवालों से कम नेट फ्रेंड्स के साथ अधिक बांटते हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हम दोस्त तो अनगिनत बना लेते हैं पर समाज से नहीं जुड़ पाते हैं। सामाजिक कार्यों में अपना योगदान देना समय एवं पैसे की बर्बादी समझते हैं।

पलक झपकते ही सब जिज्ञासाएँ सुलझाने वाला गूगल हमें व्यवहारिक ज्ञान नहीं दे पाता है। परिवार से, समाज से और धर्म से यह हमें नहीं जोड़ पाता है वरन इनसे दूर करता जा रहा है। बड़े बुजुर्गों का सम्मान, सेवा, आदर, सत्कार हमें गूगल नहीं सीखा पाता है। यूट्यूब की सहायता से ईश्वर की हम पूजा-अर्चन तो कर लेते हैं पर उसमें श्रद्धा और भाव नहीं होता है।

हम अपनी संस्कृति तीज त्योहारों को पिछड़ा हुआ समझते हैं और पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते जा रहे हैं। प्रतीत होता है कि मात्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर फोटो लगाने के लिए ही त्योहारों को मानते हैं। त्योहारों की महत्ता और उनके इतिहास से हमारी दूर-दूर तक कोई पहचान नहीं होती है।

आज की नवीन पीढ़ी की यह हालत देखकर लगता है कि धीरे-धीरे भविष्य में परिवार और समाज विलुप्त होता जायेगा और हम मशीन के आधीन। जल्द से जल्द हमें इसके समाधान को ढूंढ कर अमल में लाना होगा और नई पीढ़ी को फिर से समाज और परिवार से जोड़ना होगा। तभी हम मानव जीवन को मशीनी जीवन बनाने से रोक पायेंगे।
“जिज्ञासाएं पूरी होती है सारी, गूगल देता है अथाह ज्ञान।
पर व्यवहारिकता में पिछड़ जाते, आधुनिक गूगली विद्वान।।”

सुमिता राजकुमार मूंधड़ा

सुमिता राजकुमार मूंधड़ा

सौ. सुमिता राजकुमार मूंधड़ा (7798955888) 7/8 अचल प्लाजा 60 फ़ीट रोड मालेगांव -423203 नाशिक , महाराष्ट्र ।