गज़ल
आँख में ख्वाब बनकर पले ।
राह में दीप से हम जले ।।
बन शज़र आँधियाँ कर फतह ।
बागवां गर न अपना छले ।।
जुस्तजू है यही ऐ खुदा ।
इश्क मेरा फलक तक पले ।।
जिन्दगी है बयां कू – ब – कू ।
गुफ्तगू दरमिया क्यूँ चले ।।
दौर लाये खलिश जो कहीं ।
है ‘अधर’ बेजुबां गम खले ।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर