गज़ल
आ सवारें देश की तस्वीर को ।
हम मिटा दें धीर बन हर पीर को ।।
है हमारा ही सदा से अंग वो।
छीन लेगा कौन यूं कश्मीर को ।।
कत्ल करती है जुबां ही इस कदर ।
म्यान में रखना सदा शमशीर को ।।
बेवफाई जख्म से जादा रिसी ।
है खुदा हाजिर यहाँ तहरीर को ।।
खुद ब खुद हम हो गये हैं आपके ।
अब समझ लो प्यार मेरी पीर को ।।
रोज़ने – उम्मीद आया सामने ।
क्यूं भुला बैठे भला तकदीर को।।
काल में कल ,क्या मिलेगा कल यहाँ।
आज तुम बांधों न यूँ जंजीर को ।।
ढूँढता है आज भी गमगीन हो ।
रांझड़ा बन मेघ अपनी हीर को ।।
नफरतों की आग सी है जिन्दगी ।
खुश ‘अधर’ हैं, पी नयन के नीर को ।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’