चार बच्चे और एक माँ
सूरजभान एक सरकारी कॉलेज में लेक्चरर थे । बहुत सज्जन, मधुर स्वभाव के , प्रखर वक्ता थे । अपनी पत्नी भाग्यवंती के साथ सुख से जीवन बिता रहे थे । परिवार में तीन लड़के और एक लड़की थी । सभी बच्चे पढ़ लिखकर अच्छी नौकरियों में लग गए थे उनकी शादियां हो गई थे और वे सब आराम से हंसी ख़ुशी जीवन बिता रहे थे ।
सूरजभान अपनी पत्नी से कभी कभी मज़ाक में कहते “भाग्यवंती तू सचमुच बड़ी भाग्यवान है बच्चे पढ़ लिखकर अपने अपने घर में सुखी हैं । मैं अपनी जंमीन-जायदाद बच्चों में बराबर बराबर बाँट देता हूँ । कभी मुझे कुछ हो गया तो बच्चे तेरा बहुत अच्छे से ख़याल रखेंगे” पत्नी नाराज हो जाती कहती आप ऐसा अशुभ क्यों सोचते हैं ?
एक दिन वही हो गया, सूरजभान जी का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया । कुछ दिन शोक के बाद भाग्यवंती बच्चों से अपेक्षा रखती थी की उसे अब वो सहारा देंगें ।
भाई-बहनों में वार्तालाप हुआ भाग्यवंती देख रही थी कुछ खुसर पुसर हो रही है पर वो कुछ समझी नहीं । सबसे बड़ा लड़का माँ को अपने घर ले आया । एक दो महीने ठीक से बीते, फिर वो परेशान रहने लगा ।
वो दूसरें भाई के पास गया, बात की । आके माँ से बोला माँ अब से तू छोटे के पास रहेगी और उसे वहां छोड़ आया । छोटे का भी वही हाल हुआ । कुछ दिन बाद वह दूसरें भाई के पास पहुंचा, भाई-बहनों में झगड़ा शुरू हो गया मैं ही क्यों रखूँ सब बारी बारी से माँ को रखें । सबने फैसला किया की पंचायत में मामला ले जाएँ । पंचायत ने एक दिन मुकर्रर कर दिया ।
निश्चित दिन सब परिवार सहित इकठ्ठे हुए । भाग्यवंती को कुछ समझ नहीं आया की अचानक सभी भाई-बहन परिवार सहित क्यों इकठ्ठे हुए हैं ।
उसने एक बहू से पूछा “बहू क्या बात है, सब क्यों इकठ्ठे हुए हैं ? बहू ने जवाब दिया माँ जी आज पंचायत फैसला करेगी कि आप किसके पास रहेंगी ?
सुनते ही भाग्यवंती को चक्कर सा आने लगा उसने कहा की मैं भी चार चार बच्चों को पालती थी कभी सोचा भी नहीं था चार बच्चे एक माँ को नहीं रख पाएंगे । मेरा फैसला पंचायत क्या करेगी मेरा फैसला तो वो करेगा जो सबका फैसला करता है । कहते ही वो गश खाकर गिर पड़ी और उसके प्राण पखेरू उड़ गए ।