सत्य का एक रंग श्वेत
हम सत्य के जितने करीब
उतने उज्ज्वल,उतने धवल
सत्य का सिर्फ एक रंग “श्वेत”
विलीन है जिसमे रंग अनेक
मिथ्या है केशों लिप्त ये कालिमा
देह के सत्य ने अनवरत
शुरू कर दिया जो यह बोलना
भ्रम गुंथे मन बंधन को खोलना
झुकने लगे अनुभवों से लदे वृक्ष
देखो प्रगाढ़ होती इन झुर्रियों पर
लटक आये हैं परिपक्व फल
आड़ी टेढ़ी सी कुछ डालियों पर
अन्धकार बोलने लगे
आलोक्यमान होकर
जाग उठा सत्य जब
लम्बी नींद सोकर
सब कुछ यहां धुंधला जाता है
एक वो जब
उभर कर सामने आ जाता है
भड़कीले इन सात रंगों का सत्य
जब भी एकाकार हो जाता है
तिमिर उभरकर,लुप्तप्राय हो जाता है
कालचक्र के वेग पर चल
सिर्फ प्रकाश जगमगाता है
क्योंकि सत्य का सिर्फ एक रंग
श्वेत
विलीन हैं जिसमे रंग अनेक
— प्रियंवदा अवस्थी