प्रेम और जुदाई
प्रेम और जुदाई
इनका तो किस्सा ही पुराना है
इनका तो काम ही
रातों की नींद
और दिन का चैन चुराना है
जब पास हो दिलबर
तो मौसम भी लगता कितना सुहाना है
ये मैंने ही नही
पूरे जग ने माना है
और दूर हो जाय
जब दिल से कोसों दूर
तो तुमने भी और मैंने भी
आंसुओं से नहाना है
दर्द भी मिलता है कभी कभी
जुदाई नही सही जाती कभी कभी
फिर भी
जुदा तो होना है एक दिन
फिर क्यूँ ये दिल लगाना है
जब पता है
कि एक न एक दिन ये टूट जाना है
अब तो समझो
प्रेम और जुदाई
इनका तो किस्सा ही पुराना है
# महेश कुमार माटा