व्यंग्य : मूरख बनाम महामूरख
“का हो दीनू दे देलस भैयाजी को वोट”मतदान कर वापस लौट रहे दीनू दंपति से चौराहे पर खड़े भैयाजी के कार्यकर्ता दयाल ने पूछा।
“हां दयाल बाबू । भैयाजी के ही दे देली भोट…. पंखा छाप पर बटनवा दबा के आ रहल बानी हमदोनो प्राणि…… आखिर वोटवा खातिर आपने दु सौ रूप्यया आरू एगो पौवा अंग्रेजी जो दिये थे त भला कैसे दे देते दोसर को भोट” दीनू ने दयाल को भरोसा दिलाते हुए कहा।
“अरे उ त भैयाजी ही भेजवाए थे तुमको देने के लिए…. दुगो भोट पर दु सौ रूपया….केतना ध्यान देते है भैयाजी तुमलोगों पर और बदले मे मांगे क्या…. एगो अदना सा भोट” ।
दयाल ने अन्य कार्यकर्ताओं के सामने दीनू को समझाते हुए कहा। “ठीक है भाई अब घर जा। दीनू अपनी पत्नी के साथ घर की ओर चल देता है।
दीनू के वहां से निकलने पर दयाल अन्य कार्यकर्ताओं से बतियाने लगा “अच्छा मूर्ख बनाया दिनवा को…… भैयाजी ने एक वोट के बदले दो सौ रूपया बांटने को कहा था और हमने दो सौ रूपया नगद और सत्तर रूपये की दारू मे दोनों प्राणि का वोट खरीद लिया और एकसौ तीस रूपया बचा भी लिया ….हाहाहा..”।
दयाल संतुष्ट होते हुए बोला ” चलो अच्छा है भैयाजी को वोट मिल गया दीनू को फोकटिया नोट मिल गया और हमलोगों का भी खर्चा-पानी का जुगाड़ लग गया इ चुनाव मे”।
उधर घर जा रहे दीनू को रास्ते मे टोकते हुए उसकी पत्नी ने पूछा:-“का जी आपने तो हमको अलमारी छाप पर वोट डालने को कहा था और खुद पंखा छाप पे बटन दबा दिया”।
“अरी ना रे भाग्यवान। हमहुं अलमारी के ही भोट दिए है।
इ नेतवन सब हमलोगन से पैसा के बदले भोट खरीद कर पांच साल तक हमलोगों को मूरख बनावत रहते है। ई बार पैसा और दारू त लेनी ढेरों नेतवा से पर भोटवा देली दोसर ईमानदार प्रत्याशी के। इसप्रकार भैयाजी लोगन टाइप नेताओं को इसबार हमने मूरख बना दिया ……….इ बार एकरो लोगन के इ बात बुझा जाइ कि जनता अगर मूरख बा त नेता महामूरख….. ….हाहाहा”।
दीनू ने पत्नी की जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया।
पत्नी को स्पष्टीकरण देते हुए दीनू के चेहरे पर संतोष का भाव पूरी तरह नजर आ रहा था।