लघुकथा – वोट
शहर से गांव के रास्ते में कुछ जंगली बेर के पेड़ थे । पके मीठे बेर राहगीर चाव से खाते पेड़ की छांव में सुस्ताते और आगे बढ़ जाते ।
सालों से ये क्रम चल रहा था । एक बेर का पेड़ जो पहली बार फला था उसने बगल में खड़े बूढ़े पेड़ से कहा ” वर्षों से हम बेर बांट रहे हैं । लोग स्वाद से खाते हैं और चले जाते हैं ,परंतु कोई एहसान तक नहीं मानता । न कोई धन्यवाद ही देता है ,ऐसा क्यों है ? हम लोग कितने अभागे हैं ? “
बूढ़ा पेड़ हँसा ” खट्टे बेर देंगे तो जंगल झाड़ कहकर काट दिए जाएंगे । मीठे बेर देना हमारी मजबूरी है और मजबूरी का फायदा उठाना लोगों की आदत है । इसमें एहसान मानने की क्या बात है । “
बात उसकी समझ में आ गई थी उसकी छाया में खड़े आदमी ने पत्थर उठा लिया था उसने अब खुद को तैयार कर लिया था थोड़ी चोट खाकर भी मीठे फल देने को ।
— कुमार गौरव