कविता

शाश्वत सत्य

ना जाने क्यों,लोग फैलाते हैं गंदगी.
अपने आचार-विचार से, व्यवहार से
दूसरोँ  को सताने के भाव से !
फिर क्यों उखड जाते हैं उनसे,
जब उस गंदगी का एक छींटा,
उड़ कर खुद उन पर आ गिरता है,
प्रकृति की बेरहम मार से !
कितना कड़वा किन्तु शाश्वत यह सच है,
जो बोया है वही मिलेगा  भविष्य में,
कर सको तो कर देखो लाख जतन,
पर हमेशा नहीं बचोगे, वक़्त की मार से

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !