शाश्वत सत्य
ना जाने क्यों,लोग फैलाते हैं गंदगी.
अपने आचार-विचार से, व्यवहार से
दूसरोँ को सताने के भाव से !
फिर क्यों उखड जाते हैं उनसे,
जब उस गंदगी का एक छींटा,
उड़ कर खुद उन पर आ गिरता है,
प्रकृति की बेरहम मार से !
कितना कड़वा किन्तु शाश्वत यह सच है,
जो बोया है वही मिलेगा भविष्य में,
कर सको तो कर देखो लाख जतन,
पर हमेशा नहीं बचोगे, वक़्त की मार से