कविता

संवेदना के स्वर

जाने कैसी फितरत है
खुद से लड़ने की जुगत है
है परेशान सी है
जिन्दगी की चाह भी
खत्म है
संवेदनाओं के अहसास भी
झूठे पडे़ अपने भी
है स्व से मैं की
लडा़ई का मंजर
खो रहा
आंंगन का चैन
क्यों जगती है
आस हर दिन नई
गुंगे से है
सवेंदनाओं के स्वर
पर बंजर जमीं पर शायद
रिश्तों के फूल नहीं
खिला करते ।
अब अहसासों की
खाद भी फूलन से भरी है
दिन के सपनों सी है
ये खुर्द सी राहें।
अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान