टूटे सपने
दर्पण जैसे टूटे सपने ।
भ्रमर कोई जलजात निहारे ।
इक चकोर विधु, रात निहारे ।
हो बैठे दीवाने सारे –
गीत लिखे थे जितने हमने ।
दर्पण जैसे ………………..
इक विरहन ,की शाम हुआ मैं।
बिसरा प्रियतम नाम हुआ मैं ।
कुछ ऐसा गुमनाम हुआ मैं ।
भूले मुझको मेरे अपने ।
दर्पण जैसे……………
छुप छुप तन्हा रोते प्रियतम ।
टूटे ख्वाब संजोते प्रियतम ।
गर तुम मेरे होते प्रियतम-
तब भी क्या गम होते इतने?
दर्पण………………………
भावहीन मैं शून्य निहारूँ।
शांत नीर में कंकड़ मारूँ ।
किस किस का मैं नाम पुकारूँ ?
घाव दिये हैं मुझको सबने ।
दर्पण जैसे टूटे सपने ।
———–© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी ,प्रयाग