मुक्तक…..
विधाता छन्द
निहारूं आप को हरदम, दिलाशे की उम्मीदों से
सजा लूँ आहटों में भी, भरोषा पढ़ कसीदों से
नक्काशी खुद कहाँ कहती, मुझे गढ़ मोड़ दे कोई
भुलावे में नहीं चलती, कभी हंसियाँ मुरीदों से।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
विधाता छन्द
निहारूं आप को हरदम, दिलाशे की उम्मीदों से
सजा लूँ आहटों में भी, भरोषा पढ़ कसीदों से
नक्काशी खुद कहाँ कहती, मुझे गढ़ मोड़ दे कोई
भुलावे में नहीं चलती, कभी हंसियाँ मुरीदों से।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी