सोच रहा हूँ ।
सोच रहा हूँ ,एक कहानी लिख डालूँ ।
सोच रहा हूँ,पीड़ा का एक चित्र लिखूँ ।
सोच रहा हूँ,दुखड़ो को मैं मित्र लिखूँ ।
गम की कोई एक निशानी लिख डालूँ ।
सोच रहा हूँ………………………….
कलम तेरी किस्मत में सत्ता भोग नही ।
तेरे भाग में शासन का भी योग नही ।
लेकिन आ तू ! राजा रानी लिख डालूँ ।
सोच रहा हूँ ……………………
नील गगन की हर सीमा को बंद करूँ ।
सोच रहा हूँ, मैं सागर से द्वंद करूँ ।
पानी पर पानी से पानी लिख डालूँ ।
सोच रहा हूँ…………………………
एक अधूरी प्रेमकथा लिख डालूँ मैं!
या विरहन की हृदय व्यथा लिख डालूँ मैं !
या कोई मीरा दीवानी लिख डालूँ ।
सोच रहाँ हूँ…………………..
– दिवाकर दत्त त्रिपाठी