कविता – बादशाह का डर
वो रोज़ ही
मुझे देख
मुस्कुराता,उछलता
हाथ चूमता और फिर
आगोश मे ले लेता
क्योकि वो मेरे
रूह और जिस्म के
बेहद करीबी है…
आज वो
मुझे देख
न मुस्कुराया
न उछला
बस अकबकाया
और दौड़ गया
उल्टे पॉव….
क्योकि आज
मेरे हाथों मे फूल नही
किताब रूपी खंजर था…
चाहे
मेरा करीबी
एक सुशील समझदार
इन्सां होने के साथ
एक चिंतक कवि
एक कुशल नेता
और बहादुर योद्धा है
परन्तु अफसोस…..
वो पढ़ नही सका
नैनों की भाषा
मै खंजर उसको
भेंट करने आई थी….!!
— रितु शर्मा