दूर गाँव
दूर गाँव में मेरा घर है ।
मेरा एक प्रवास शहर है ।
मेरे बचपन की कुछ यादें ।
अपने यारों के कुछ वादे ।
एक भी नही सुनी हृदय की,
पेट के थे मजबूत इरादे ।
छोड़ दी शस्य श्यामला धरती,
जिसकी सोंधी महक सुघर है ।
दूर गाँव में ………………..
छूट गई कोयल, अमराई ।
बचपन की हो गयी विदाई।
होते ही किशोरवय,मेरी –
शहरों से हो गयी सगाई ।
थाह नापता था मैं जिसकी,
छूट गयी वो बड़ी नहर है ।
दूर गाँव में……………….
भागम भाग हो गया जीवन ।
ठण्डी आह हो गया जीवन ।
सुस्ताने का समय नही है ,
अनमिट प्यास हो गया जीवन ।
न ही छंद ,न अलंकार हैं ,
न धुन,ताल ,न कोई स्वर है ।
दूर गाँव में……………………..
—- डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी