ग़ज़ल
जीस्त के पाँव यूँ जो ठहरते नहीं
चलने से आबले ये मुकरते नहीं
बेवजह साथ यूँ छोड़ तुमने दिया
बिन ख़िज़ां के तो पत्ते भी झरते नहीं
हर कहीं है मिलावट नमक की, तभी
आजकल ज़ख़्म मरहम से भरते नहीं
दुश्मनी जाने क्या हो गई आँख से
ख़्वाब भी मेरी शब से गुज़रते नहीं
दिल की तन्हाई में रो लें चाहे, मगर
हम ज़माने से फ़रियाद करते नहीं
फ़ासला था दरक कर बिखर जाने में
थाम लेते जो तुम तो बिखरते नहीं
मिलती उम्मीद की गर खुराकें उन्हें
ख़्वाब मुफ़लिस निगाहों के मरते नहीं
सर झुकाने से ‘पूनम’ वो भी डरते हैं
मौत से जिनका दावा है डरते नहीं
—— पूनम पाण्डेय