लघुकथा

बेकार की चीज

रामू एक किसान था । अब वृद्ध हो चला था सो उसके तीनों बेटे ही अब खेती बारी का काम देखते थे । खेती के अलावा उसके घर पर कई भैंसें गायें और बैल भी थे ।  रामू एक दिन घर पर ही गाय भैंसों को भूसा व घास डाल कर हटा ही था कि अपने घर के सामने कल्लू कसाई को खड़े देखकर चौंक गया । कल्लू ने रामू को नमस्ते करते हुए बताया ” रमेश बाबु ने कहा है वह बुढ़िया भैंस जो हैं न वह मैं ले जाऊं ! आपकी इजाजत हो तो मैं ले जाऊं । हिसाब किताब रमेश बाबु से हम समझ लेंगे । कह रहे थे अब इसने दूध देना भी बंद कर दिया है और काफी बूढी भी हो गयी है …….”
अभी उसकी बात ख़त्म भी नहीं हुयी थी कि रामू दहाड़ उठा ” खबरदार ! जो हमारे किसी जानवर की तरफ नजर भी उठाकर देखा तो ! अभी मैं जिन्दा हूँ और हमने जानवर सिर्फ पैसे के लिये नहीं पाले हैं बल्कि इसलिए पाले हैं कि हमें उनसे प्यार है और हमेशा रहेगा चाहे वो हमारे लिए फायदेमंद न रहें तब भी । ” कल्लू कसाई ने लौट जाने में ही अपनी भलाई समझी ।
आवेश से हांफते हुए रामु बडबडाये जा रहा था ” अरी भागवान ! सुनती हो ! ये रमेशवा अपनी बुढ़िया भैंसिया को कल्लू कसाई को बेचने जा रहा था । ये तो लगता है किसी दिन हम दोनों को भी बेच देगा । अब हम लोग भी तो उनके लिए बेकार हो गए हैं न ? “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।