ग़ज़ल- कुछ दाग लगा दोगे
इक जख़्म पुराना है फिर जख़्म नया दोगे ।
मासूम मुहब्बत है कुछ दाग लगा दोगे ।।
कमजर्फ जमाने में जीना है बहुत मुश्किल ।
है खूब पता मुझको दो पल में भुला दोगे ।।
एहसान करोगे क्या बेदर्द तेरी फ़ितरत ।
बदले में किसी भी दिन पर्दे को उठा दोगे ।।
कैसे वो यकीं कर ले तुम लौट के आओगे ।
इक आग बुझाने में इक आग लगा दोगे ।।
आदत है पुरानी ये गैरों पे करम करना ।
अपनों की तमन्ना पर अफ़सोस जता दोगे ।।
मजमून वफाओं का लिक्खा है बहुत खत में ।
बेख़ौफ़ हवाओं में यह ख़त भी उड़ा दोगे ।।
तुमने ही निभाया कब किरदार भरोसे का ।
अश्कों की इमारत को लहजों में छुपा दोगे ।।
चर्चा है सितारों में है चाँद नया क़ातिल ।
गर जुर्म हुआ साबित फरमान सुना दोगे ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी