ग़ज़ल – रहमतें बीते दिनों की अब कहानी हो गईं
चाँद के आने से कुछ रातें सुहानी हो गईं ।
महफ़िलें गुलज़ार होकर जाफ़रानी हो गईं ।।
काट लेते हैं यहाँ सर चन्द सिक्कों के लिए ।
रहमतें बीते दिनों की अब कहानी हो गईं।।
हसरतों का क्या भरोसा बह गईं सब हसरतें ।
वो छलकती आँख में दरिया का पानी हो गईं ।।
हुस्न के इजहार का बेहतर सलीका था जिन्हें ।
देखते ही देखते वो राजरानी हो गईं।।
खत में क्या लिक्खूँ यही बस सोचता ही रह गया।
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं ।।
मिल गया तरज़ीह शायद फिर तुम्हारे हाल पर ।
अब तेरी पैनी अदाएं भी गुमानी हो गईं ।।
कुछ तवायफ़ के घरों में हो रही चर्चा गरम ।
है बड़ा मसला के अब वो खानदानी हो गईं।।
मानता हूँ मुफ़लिसी में था नहीं रूमाल तक ।
बस झुकी नज़रों की वो यादें निशानी हो गईं ।।
दफ़्न कर दो ख्वाहिशें ये दौलतों का दौर है ।
इश्क़ बिकता ही नहीं बातें पुरानी हो गईं।।
आजमाइश में वो आती हैं यहां चारा तलक ।
मछलियो को देखिये कितनी सयानी हो गईं ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी