“कुंडलिया”
कलशा पूजन मातु का, सस्थापन प्रथमेय
कंकू चंदन अरु जयी, नवल शृंगार धरेय
नवल शृंगार धरेय, मातु चरन नित्य वंदन
नवनव दिन नवरात्र, नाचते माँ के नंदन
गौतम गण अनुराग, विनय अनुनय भर मनसा
श्रद्धा शुद्ध पराग, अलंकृत घर घर कलशा॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी