विवादित मुद्दे पर हठ का त्याग जरूरी
देश के सर्वोच्च न्यायलय ने विवादित राम मंदिर को लेकर जो सुझाव दिये हैं उसकी कोशिश पहले ही नाकाम रही है । और यही कारण है कि आज यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है । अगर बातचीत से ही इस मसले को सुलझाया जा सकता तो आज यह मामला कोर्ट तक पहुंचता ही नहीं । इतना ही नहीं बल्कि इस मामले से संबंधित इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी दोनों पक्षों द्वारा दरकिनार कर दिया गया है । तब जाकर यह मामला आखिर में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है, ऐसे में कोर्टद्वारा देश के इस सबसे बड़े विवादित मुद्दे को आपसी बातचीत से सुलझा लेने का सुझाव देना सर्वथा अर्थहीन प्रतीत होता है ।
इस मामले के इतिहास पे गौर किया जाये तो सहज ही पता चलता है कि यह मुद्दा आस्था से अधिक जिद और हार-जीत का मसला है । ऐसे में किसी भी पक्षद्वारा विवादित जमीन से इत्तर कोई समझौता कर लेने की बात सोचना भी बेमानी लगती है । ऐसी परिस्थिती में अब इस मामले का निपटारा या तो सुप्रीम कोर्ट में सम्भव है या संसद भवन में ।
सुप्रीम कोर्ट चाहे तो प्रतिदिन सुनवाई के माध्यम से इस मुद्दे को समाप्त कर सकता है । बस इस गंभीर मुद्दे पे सुप्रीम कोर्ट को थोड़ी सख्ती बरतने की जरूरत है । वैसे भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले ही उक्त विवादित ढांचे के संदर्भ में अपनी राय दे दी है । अब सुप्रीम कोर्ट चाहे तो उन साक्ष्यों का पुनरावलोकन कर जल्द से जल्द इस मुद्दे को सुलझा सकती है । और एक बार कोर्ट द्वारा फैसला सुनाये जाने के बाद उस फैसले को स्वीकारना दोनों ही पक्षो के लिए अनिवार्य होगा । तब कहीं जाकर यह मामला बिना किसी शोर-सराबे के निपट सकता है ।
इसके अलावा जो दुसरा रास्ता है वह है कानुन का रास्ता । और जैसा की हम जानते हैं कि वर्तमान में केन्द्र व प्रदेश दोनों ही स्थानों पे भाजपा शासित सरकारें हैं और भाजपा की राजनीति का आधार ही राम मंदिर रहा है तो ऐसे में केन्द्र सरकार को राज्य सभा में बहुमत का आंकड़ा हासिल करते ही बिना समय गंवाये सदन में राम मंदिर निर्माण के लिये आवश्यक बिल उत्थापित करना होगा । जिससे राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो सके । पर ऐसा करते हुये सरकार को इस बात का भी खासा ध्यान रखने की जरूरत है कि मुसलमानों के साथ भी अन्याय न हो और उन्हे नमाज अता करने के लिये उपयुक्त स्थान पर सरकार द्वारा एक ही वक्त में मस्जिद निर्माण की भी व्यवस्था की जा सके । जिससे किसी के साथ कोई भेदभाव ना हो ।
इस मसले पर मुसलमानों को भी थोड़ी सहृदयता दिखाने की जरूरत है । उन्हे सरलता के साथ इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब देश का बंटवारा ही धर्म के आधार पर हुआ है तब देश के बहुसंख्यकों की भावनाओं का ख्याल रखने की जिम्मेदारी उनकी भी है । और जिम्मेदारी तब और बढ़ जाती है जब मामला आस्था के जुड़ा हो । भारत के बहुसंख्यकों की आस्था श्रीराम के साथ सबसे अधिक जुड़ी हुई है । वे राम को सिर्फ अलौकिक भगवान ही नहीं मानते बल्कि श्रीराम उनके लिए आदर्श हैं । और ऐसे में अपने आराध्य के जन्मस्थान का महत्व क्या होगा ये मुसलमानों को समझाने की जरूरत नहीं है । मुसलमान स्वयं ही यह अच्छी तरह जानते हैं कि मक्का-मदीने से उनका क्या रिस्ता है ।
यह बात सर्वविदित है कि भारत के मुसलमान दुनिया के अन्य किसी भी राष्ट्र के मुसलमानों से अधिक स्वतंत्रता के साथ मानव अधिकारों का भोग करते हैं । और अगर यह संभव हो पाया है तो सिर्फ और सिर्फ देश के बहुसंख्यकों की सहृदयता के कारण, जिन्होंने बाहें फैलाकर उन्हे गले लगाया है । ऐसे में भारत के मुसलमानों का भी फर्ज बनता है कि वे स्वयं ही आयोध्या में राम मंदिर की नींव रखने की पहल करें जिससे देश में सांप्रदायिक सौहार्द कायम हो और मुसलमानों के साथ देश के बहुसंख्यकों का रिस्ता और अधिक मजबूत हो सके ।
वैसे भी जब 2003 में इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अयोध्या में खुदाई की तब उन्हे वहां ऐसे बहुत से साक्ष्य मिले थे जिससे सह साबित हो गया था कि उक्त स्थान पर मस्जिद से पूर्व कोई मंदिर था । हर बात पर हिंदूओं का विरोध करनेवाले और हिंदूओं की आस्था को नकारने वाले मुलमानों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इस दावे को स्वीकार कर लेना चाहिये कि उक्त मस्जिद के नीचे मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुये हैं जो इस बात का प्रमाण है कि उक्त स्थान पर मस्जिद से पहले राम मंदिर था जिसे बाबर ने नष्ट करने की असफल कोशिश की थी ।
इन प्रमाणों के साथ सत्य को स्वीकार कर लेना ही अब देश की एकता और अखंडता के लिये आवश्यक है । भारत में यह अकेला एक ऐसा मुद्दा है जिसने देश में वर्षों से कायम हिंदू-मुस्लिम एकता को खंडित कर दिया है । जिसका फल दोनों ही पक्षों के लोग भोग रहें हैं । देश के हिंदू और मुसलमान दोनों को ही अब यह समझ लेना होगा कि इस मुद्दे को राजनैतिक पार्टियां अपने फायदें के लिये भुनाने में लगीं हैं, जिसका खामियाजा आम इंसानो को ही भुगतना होगा ।
अतः अब देश में शांति-संप्रति बनाये रखने के लिये सुप्रीम कोर्ट के सुझावों पे गौर करते हुये इस विवादित मुद्दे को निबटा लेने में ही सबकी भलाई है । और आपसी सहमति से इस मुद्दे के निपटारे से पहले सभी पक्षों को इस मामले से राजनैतिक पार्टियों को दूर रखने की प्रतिबद्धता जतानी होगी,जिससे कि मामले के निबटारे में आपसी सौहार्द ना बिगड़े और मामला प्रेम व सद्भावना के साथ निपट जाये और भारत आपसी भाईचारे का मिशाल बना रहे ।
मुकेश सिंह
सिलापथार,असम