शिव भोलेनाथ
वे देवों के महादेव हैं
भक्तों के हृदय में बसते सदैव हैं ।
शम्भू मन से बड़े ही भोले हैं
उनके क्रोध से जग ये डोले है ।
रहते वे हर कंकर में
कहलाते भी शिव-शंकर हैं ।
शोभे चंद्र बनके ताज सिर पे
गले में सर्प की माला है ।
गंगा जिनकी जट्टा में बसती
पीते वे भंग प्याला हैं ।
सारी दुनिया जिनकी प्रेम दिवानी
अर्द्धांगिनी है उनकी मां काली-भवानी ।
सुर-असुर सभी उन्हे चाहे हैं
पर भक्त ही शिव को पावै हैं ।
पापीयों के लिए वे काल हैं
भोले कहलाते तभी महाकाल हैं ।
मुकेश सिंह
सिलापथार,असम
मो०-09706838045