नागमणि –एक रहस्य ( भाग –३ )
उस दिन अमरनाथ जी से हमारी मुलाकात संक्षिप्त ही रही थी । चाय नाश्ता वगैरह करके उस दिन सभी चले गए । बाद में पता चला अमरनाथ जी कुछ दिन वहां रुकने वाले थे ।
मित्र श्री संतराम का रिश्तेदार होने की वजह से हमने एक दिन उन्हें शिष्टाचार वश खाने पर बुलाया । अबकि उनके साथ एक और आदमी भी था जिसे वो अपना चेला बता रहे थे । इसके पहले की मुलाकात में अमरनाथ जी ने खुद किसी चमत्कार के बारे में नहीं बताया था लेकिन उनके इस तथाकथित चेले ने गुरूजी की तारीफों के पुल बांध दिए थे । ये और बात है कि मैं उसकी किसी बात से प्रभावित हुए बिना शिष्टाचार वश उनकी बातें सुन रहा था । बातों ही बातों में उनके चेले ने बताया ‘ गुरूजी को सर्प विद्या में बड़ी महारत हासिल है । एक बार तो इन्होने सरयू नदी के किनारे सांप के काटने से मरे हुए एक लडके के शव को जिन्दा कर दिया था । ‘ उसने शायद शेखी ही बघारने के लिए उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के कद्दावर नेता जगदम्बिका पाल को भी अपने भक्तों की सूचि में होने का दावा किया ।
खैर उस दिन का शिष्टाचार भोज समाप्त हुआ और गुरूजी और उनका चेला अपने घर चले गए ।
इस मुलाकात के बाद गुरूजी हमसे कुछ खुल से गए थे और अब उनका हमारे यहाँ आना जाना सामान्य सी बात हो गयी ।
एक दिन दोपहर का भोजन करके मैं वापस अपने काम पर मजदूरों के पास जाने के लिए निकला ही था कि सामने से गुरूजी अकेले आते हुए दिख गए ।
लोगों की देखादेखी अब हम भी गुरूजी कह कर ही बात करने लगे थे जबकि वो भी सज्जनता से हमें विशेष सम्मान देते थे । मैंने यूँ ही पुछ लिया ” फुरसत हो तो चलो तुम्हें देहात की सैर करा लायें । ”
वो तुरंत ही तैयार हो गए । बोले ” ये तो अच्छी बात है आपके साथ यहाँ का रहन सहन भी देखने को मिल जायेगा और नयी जगह की सैर भी हो जायेगी । ”
उस दिन मेरा चार जगह पेड़ काटने का काम चल रहा था । यूँ तो मजदूरों के सीर पर सवार होकर काम कराना मेरी शैली नहीं थी । लेकिन जहाँ कहीं कोई खतरा मुमकिन होता मैं वहां अवश्य खड़ा रहता और मजदूरों को उचित सलाह देकर काम सावधानी से करवाता । इसी वजह से मेरे सारे आदमी मुझसे खुश रहते थे और शायद दूसरों से ज्यादा काम करते थे जिसका फायदा भी मुझे ही होता था । ऐसे ही एक जगह मेरा खड़ा रहना बहुत ही आवश्यक था । एक भारीभरकम पेड़ पुरी तरह से एक घर पर झुका हुआ था जिसकी दुसरी तरफ सहारे के लिए कोई दुसरा पेड़ भी नहीं था । इसे गिराना बहुत ही खतरनाक था । जरा सी भी चूक का नतीजा काफी गंभीर होता । उन्हें बाइक पर बैठा कर मैं सीधे अपने काम की जगह की तरफ चल दिया । नालासोपारा शहर से लगभग पांच किलोमीटर दुर पहुँचने पर रास्ते में ही निर्मल नामक गाँव में एक विशाल शिव मंदिर है जो कि काफी विख्यात है । इसे जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित बताया जाता है और हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इस मंदिर का पालकी उत्सव मनाया जाता है । इस उपलक्ष्य में यहाँ हर साल मेला लगता है जो पहले लगभग एक महीने तक चलता था जबकि अब इस मेले की अवधि मुश्किल से सात दिन ही बची है । वर्तमान पीढ़ी की मेले और उत्सवों के प्रति उदासीनता या फिर समय की अनुपलब्धता भी इसके पीछे की वजह हो सकती है जो यह मेला अब दिनोंदिन अपना आकर्षण खोता जा रहा है ।
इस मंदिर के करीब से गुजरते हुए उस इलाके से अनजान गुरूजी ने कुछ सुंघने के से अंदाज में मुझसे पुछा ” यहाँ नजदीक कोई शंकर भगवान का मंदिर है क्या ? ”
मैंने बिना बाइक रोके ही जवाब दिया ” हां ! है तो ! क्या बात है ? ” दरअसल मुझे काम पर पहुँचने की जल्दी थी सो वहां रुकना नहीं चाहता था ।
गुरूजी ने जवाब दिया ” यहाँ मुझे अजीब सी गंध आ रही है । ऐसा लग रहा है जैसे यहाँ आसपास कोई इच्छाधारी नाग रहता है । इस लिए पुछ लिया था । क्यूंकि मेरी जानकारी के मुताबिक इच्छाधारी नाग अक्सर किसी जागृत शिवस्थान के आसपास ही रहते हैं । ”
बाइक चलाते हुए मैं अपने गंतव्य की ओर अग्रसर था और उनकी बात सुनते ही मुझे उस मंदिर के बारे में प्रचलित एक बात का स्मरण हो आया । उस मंदिर के बारे में एक रहस्य के बारे में यहाँ अक्सर लोग चर्चा करते हैं लेकिन ठीकठाक जवाब किसी के पास नहीं है । रहस्य यह है कि शाम की आरती के बाद शिवलिंग व मंदिर की साफ़ सफाई करके मंदिर गर्भगृह के पट बंद कर दिए जाते हैं और आज भी सुबह जब गर्भगृह का दरवाजा खुलता है तो शिवलिंग पर ताजे तोड़े गए बेलपत्र और फुल चढ़ाकर पूजा किया हुआ पाया जाता है । आज तक कोई यह नहीं जान सका है कि मंदिर का दरवाजा खुलने से पहले ही यह बेलपत्र चढ़ाकर पूजा करनेवाला कौन है ?
लेकिन अपने मन में उठ रहे मनोभावों को छिपाते हुए मैंने गुरूजी को बताया ” यहीं रस्ते पर ही एक जागृत शिवस्थान है लेकिन हम लोगों ने तो किसी इच्छाधारी नाग के बारे में यहाँ किसी के मुंह से नहीं सुना है आज तक । ”
शायद गुरूजी हँसे थे मैं देख नहीं पाया था । पान की पिक थूकते हुए बोले ” लोगों को क्या पता होगा इच्छाधारी नाग के बारे में । वह तुम्हारे सामने ही आकर खड़ा हो जायेगा तुम पहचान नहीं पाओगे । लेकिन मैं तुम्हें इच्छाधारी नाग से मिलवाऊंगा कभी योग बना तो । ”
मैं बोल पड़ा था ” ठीक है गुरूजी ! आप दिखा पाए तो बहुत ही अच्छी बात होगी । ”
इसी तरह बात करते हुए हम लोग अपने काम की जगह पर पहुंचे और कुछ गाँव वालों की मदद से उस पेड़ को खुली जगह में सुरक्षित गिरा लेने के बाद हम लोग वापसी में उसी मंदिर के पास से गुजरे । अब मुझे कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं थी सो मंदिर के पास से गुजरते हुए देवदर्शन का लोभ नहीं छोड़ सके । गुरूजी को भी दर्शन कराना था । यह मंदिर लगभग अस्सी सीढियां चढ़कर थोड़ी उंचाई पर बना हुआ है और इसकी बनावट किसी छोटे से किले नुमा है । चारों तरफ प्रशस्त दालान और बिच में गर्भगृह है । दर्शन करके लौटते हुए गुरूजी ने बताया ” यहाँ इच्छाधारी नाग और नागिन का एक जोड़ा रहता है और यही दोनों आकर सबसे पहले इस मंदिर में शंकर भगवान की पूजा करते हैं । ”
अब गुरूजी की बातें मुझे थोड़ी थोड़ी प्रभावित कर रही थीं फिर भी अभी मुझे उनकी बातों पर पूरा यकिन नहीं हो पा रहा था ।
अगले दिन सुबह ग्यारह बजे उनको अपने यहाँ आने के लिए कहकर मैं ने अपने घर पहुंचकर उन्हें विदा कर दिया । जाते हुए वह कहना नहीं भूले ” आपके साथ गाँव घूम कर और मंदिर में दर्शन करके बड़ा मजा आया । “