“मुक्तक”
मापनी- 2122 2122 2122 2122
हर दिशाओं से पवन उठने लगी है आंधियों सी
बेवजह सी बज रही हैं घंटियाँ म्मुनादियों सी
लोग बहरे तो नहीं पहचानते हैं रुख हवा की
आँख पर रखके हथेली झांकते क्कहानियों सी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
मापनी- 2122 2122 2122 2122
हर दिशाओं से पवन उठने लगी है आंधियों सी
बेवजह सी बज रही हैं घंटियाँ म्मुनादियों सी
लोग बहरे तो नहीं पहचानते हैं रुख हवा की
आँख पर रखके हथेली झांकते क्कहानियों सी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी