ग़ज़ल – चाहतों का तकाजा
दिल को फिर से चाहतों का तकाजा हुआ है
आंख के तट पे आंसुओं का जनाजा हुआ है
काश लम्हे वो लौट आये जो गुजारे थे साथ
दिल की धड़कनों में फिरसे अंदाजा हुआ है
हम हों तुम हों और हमारी बातें हों आपस में
अहसासों का मन पे फिरसे शिकंजा हुआ है
जमाने की रूशवाईयां अब डराती नहीं मुझे
जमाने की रूशवाई से ईश्क बेमजा हुआ है
आज आ कर थाम ले हाथ हमारा ऐ जिंदगी
अरमानों का रंग आज फिर फिरोजा हुआ है
नादां ये दिल मानता ही नहीं जुदा हुए थे हम
दिल फिर से दीवाना तुझ पे जाने जां हुआ है
— नन्द सारस्वत