छतरी
बरसात में
छतरी का भी
एक अलग अंदाज है !
बता सकते हो क्यों ?
चलिए मैं बताता हूँ ….
बरसात में
आते है जब
दो जिस्म !
एक छतरी के नीचे
तो पनपते हैं |
मधुर-मधुर एहसास ||
मिलती हैं नजरें
एकाकार होकर !
उतरते हैं दिल में
आँखों के रस्ते से
स्नेहिल भाव !
जो निर्मलता
लिए हुए…………..
श्रीगणेश करते हैं !
पावन प्रेम का |
वह प्रेम !!
जो जीवन है !
खुशी है !
उमंग है !
और
उज्ज्वल लौ है
“दीप” के सम ||
— डॉ प्रदीप कुमार “दीप”