आ गया है फिर सिकन्दर देखिये
आ गया है फिर सिकन्दर देखिये ।
हारते पोरस का मंजर देखिये ।।
लुट रही थी आबरू सड़को पे तब ।
रोमियों को अब बुलाकर देखिये ।।
गाँव जीता था अंधेरों में कभी।
रौशनी है गाँव जाकर देखिये ।।
सब मवाली भाग कर जाने लगे ।
अब चमन में सर उठाकर देखिये ।।
बच रहे मासूम कटने से यहाँ ।
पाप का घटता समंदर देखिये ।।
बन्द होगी वह वसूली इस तरह।
दिख रही खाकी में अंतर देखिये ।।
खूब सी ऍम ओ मरे थे लूट में ।
जां बचाते आज रहबर देखिये ।।
हाथियों ने खा लिया गैरों का हक़।
पेट में क्या क्या है अंदर देखिये ।।
आ रहे उम्मीद से मिलने बहुत ।
चोर के बचने का ऑफर देखिये ।।
थी वो अय्यासी में डूबी सल्तनत ।
हुक्मरां का सर मुड़ाकर देखिये ।।
ख़ास मजहब से लुटी है औरतें ।
दीजिये हक़ फिर मुकद्दर देखिये ।।
—नवीन मणि त्रिपाठी