जाकी अँखियों तेरी प्यास
बैठी चुप आगार मैं प्रज्वल दीपक दिशि चार
हर झोंके से लड़ रहीं पलकें निज बाँह पसार।।
दिशा भरम ना हो तुम्हेे ये दुनिया सजा बाजार।
आ जाओ हृद प्रेम भर मोरी बाती जले कुम्हार ।।
टलना छलना और लूटना जिसका हो ब्यौपार।
छिटके हाथों का मोल तुझे क्या देगा वो संसार ।।
यहाँ घर घर है त्योहार औ बने अगिन पकवान।
मैंने गुड़ संग पका रखे तेरे खातिर चुन कर धान ।।
पच खिड़की के पट खुले औ देहरी उथली आस।
वो माटी तप सोंधी भई जाकी अँखियों तेरी प्यास।।
प्रियंवदा अवस्थी©2015