“तलाक कबूल है”
मुझे ये निकाह कबूल है
मुझे तुम्हारा साथ कबूल है
मुझे तुम्हारी पाबंदियाँ कबूल है
मुझे जमाने की रूसवाइयां कबूल है
पर तुम्हारी कई बीवीयाँ कबूल नहीं !
जैसे तुमको मेरा दुजा शौहर इसलिए मुझे तलाक कबूल है!
मुझे कानूऩ से “तीन शब्द” “तीन बार” से
अपने और अपने बच्चों का सरक्षित भविष्य चाहिए
मेहर की रकम काफी नहीं की
मैं पूरी जिन्दगी गुज़र बशर कर पाउँ !
मुझे मेरी देह “पर” का नहीं “स्व”का अधिकार चाहिए
मैं कोई मशीन नहीं जो खराब होने तक पैदा करती रहूँ
औलाद पैदा करने की मेरी इच्छा का मान चाहिए !
मैं भी इन्सान हूँ पुरूषों जैसा अपनी इज्जत चाहती हूँ
मैं भी ताजी हवा में साँस लेना चाहती हूँ बेनकाब होकर !
इसलिए बीवी को भी शौहर के समान
तलाक देने का अधिकार चाहिए !
कुमारी अर्चना