कविता

“तलाक कबूल है”

 

मुझे ये निकाह कबूल है
मुझे तुम्हारा साथ कबूल है
मुझे तुम्हारी पाबंदियाँ कबूल है
मुझे जमाने की रूसवाइयां कबूल है
पर तुम्हारी कई बीवीयाँ कबूल नहीं !

जैसे तुमको मेरा दुजा शौहर इसलिए मुझे तलाक कबूल है!

मुझे कानूऩ से “तीन शब्द” “तीन बार” से
अपने और अपने बच्चों का सरक्षित भविष्य चाहिए

मेहर की रकम काफी नहीं की
मैं पूरी जिन्दगी गुज़र बशर कर पाउँ !

मुझे मेरी देह “पर” का नहीं “स्व”का अधिकार चाहिए
मैं कोई मशीन नहीं जो खराब होने तक पैदा करती रहूँ
औलाद पैदा करने की मेरी इच्छा का मान चाहिए !

मैं भी इन्सान हूँ पुरूषों जैसा अपनी इज्जत चाहती हूँ
मैं भी ताजी हवा में साँस लेना चाहती हूँ बेनकाब होकर !

इसलिए बीवी को भी शौहर के समान
तलाक देने का अधिकार चाहिए !
कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना वर्तमान मे राजनीतिक शास्त्र मे शोधार्थी एव साहित्य लेखन जारी ! विभिन्न पत्र - पत्रिकाओ मे साहित्य लेखन जिला-हरिश्चन्द्रपुर, वार्ड नं०-02,जलालगढ़ पूर्णियाँ,बिहार, पिन कोड-854301 मो.ना०- 8227000844 ईमेल - [email protected]