सत्य
सत्य क्या है? सत्य यानि जो है समकालिन । जो हमने देखा है, जो समझा है, जो हम जी रहे हैं । शायद वही सत्य है ।
सत्य यानि जो गहन हैं, जिसे किसी कालखंड से कोइ भी लेनदेन नहीं ।
जो समझ में आता है या फिर आता ही नहीं !
फिर भी – जिसका अहसास होता है हमें । जिसे हम बयाँ नहीं क सकतें
मगर हमारे बीच जो है, हमारे साथ है । हमें हर पल सीखाता है, गिराता है कभी और आगे भी बढाता है । सोचने-समझाने पर मजबूर करता है, फिर भी सत्य है ।
असत्य भी तो सत्य का हिस्सा हैं क्योंकि उनकी उपस्थिति भी सत्य है । उनका भी अस्तित्व है । आख़िर ये सत्य क्या है?
जो हर पल हमें साथ देकर भी हमसे अलिप्त रहें । निराकार अस्तित्त्व के साथ
पलपल हमें डराता रहे । श्रद्धा, भक्ति और विश्वास को दिखाकर अपनी मनमानी करें । सत्य, सत्य है या भ्रामक? ये भ्रामकता के बीच भी अपने ही आँखें दिखाते है हमें । नींद में भी सत्य है और सपने में भी । क्यूंकि सपने कभीकभार सच बन जाते हैं । तब यही सत्य हँसता है हमारे सामने और साबित करता है खुद को । मेरा लिखना, आपका पढ़ना भी सत्य है ।
सत्य यानि तुम, सत्य यानि मैं और हमारे अंदर रही वह आत्मा । जो इस सत्य पर सोचने को मजबूर करती है । यही सत्य है कि – सत्य है । मैं हूँ और तुम हो….!!
–- पंकज त्रिवेदी