कविता

आस लगाये क्यों बैठी हूँ

उठी आन्धी ऐसी मन में
छिड़ गये मन के तार फिर
आज भी जुगनू की तरह
करती रही बस तेरा इन्तजार
बेसब्र सी
ये आस लगाये क्यों बैठी हूँ

चमक सी तेरी बातों में
हर पल नई आस भी
खोकर अपने कई सपने
तुममें करती रही बस युँ ही
बेसब्र सी
ये आस लगाये क्यों बैठी हूँ

था तुम्हें तिमिर में चमकने का
वरदान सदैव ही ऐसा तो क्या
उड़ न पाती मैं निरीह
ये बात दिल में लगाये
सिर्फ तुझसे आस लगाये
बेसब्र सी
ये आस लगाये
क्यों बैठी हूँ

प्रलय की राह में भी
प्रणय की आस लगाये
ये शमां युँ ही बेसब्र बेखुद सी
ये आस लगाये क्यों बैठी हूँ।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - [email protected] बीकानेर, राजस्थान