इंसानियत — एक धर्म ( प्रथम भाग )
राखी और रमेश अपनी कार में बैठे बड़ी तेजी से अपने घर की तरफ बढे जा रहे थे । शाम का धुंधलका फैलने लगा था और रमेश की कोशिश थी कि अँधेरा गहराने से पहले अपने घर पर सकुशल पहुँच जाये इसके लिए कार अपनी पूरी गति से कुशलता पूर्वक चला रहा था । अभी कुछ दिनों पहले इसी इलाके में घटी सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड से इलाके के सभी लोग दहल गए थे और दिन डूबने के बाद यह सड़क सुनसान हो जाती थी ।
गाड़ी चलाते हुए वह मन ही मन राखी पर खीझ भी रहा था । मैडम की खरीददारी ख़त्म ही नहीं हो रही थी । रमेश द्वारा बार बार समय का ध्यान दिलाये जाने पर उसका एक ही जवाब होता ” कोई रोज रोज थोड़े ही न बाजार आना है ? और फिर जरुरत की चीज तो खरीदनी ही पड़ेगी । ”
रमेश ने कलाई में बंधी घडी देखी । रात के लगभग आठ बजने वाले थे । अँधेरा घिर चुका था । अब सड़क पर वाहनों की आवाजाही भी लगभग ना के बराबर दिख रही थी ।
रामपुर अभी भी अठारह किलो मीटर दुर था । रमेश के माथे पर चिंता की लकीरें रात के अँधेरे की तरह गहराती जा रही थीं । अब राखी भी ख़ामोशी से उसको तन्मयता से गाड़ी चलाते हुए देखे जा रही थी ।
सड़क पर दूर पुलिस की गश्ती गाड़ी की घुमती हुयी पिली रोशनी देखकर रमेश ने राहत की सांस ली । कुछ ही पलों में वह उस गाड़ी के नजदीक पहुँच गया । पुलिस की गाडी सड़क के किनारे खड़ी थी और उसकी बोनट पर एक दरोगा अपनी लम्बी टांगें लटकाए बैठा हुआ था ।
दो सिपाहियों ने हाथ में पकडा टोर्च दिखाते हुए रमेश को रुकने का ईशारा किया । रमेश ने उन सिपाहियों के समीप ही अपनी कार रोक दी । खिड़की से बाहर झांकते हुए बोला ” क्या बात है ? ”
एक सिपाही ने जवाब दिया ” कुछ नहीं यूँ ही रूटीन चेकिंग चल रही है । ऊपर से आदेश है । गाड़ी के कागजात वगैरह लेकर चलो । साहब उधर हैं । ”
रमेश ने कागजात वगैरह निकालने के लिए गाड़ी के अन्दर लाइट चालु किया । अभी वह कागजात दराज में से निकाल ही रहा था कि तभी गाड़ी की बोनट पर बैठा दरोगा चीख उठा ” अबे क्या हुआ असलम ? देर क्यूँ कर रहा है ? ”
असलम नाम का वह सिपाही बोल पड़ा ” साहब ! आया ! वो कागज ढूंढ रहे हैं । ”
” . ठीक है ! यादव को बोल वह उससे कागज लेकर आएगा । तब तक तू मेरे पास आ ” कहते हुए दरोगा ने असलम को अपने पास बुलाया ।
असलम लम्बे लम्बे डग भरता हुआ दरोगा आलम खान के पास पहुँच गया । उसको नजदीक आया देख आलम धीरे से फुसफुसाया ” गाड़ी में कोई जनाना भी है क्या ? ”
असलम ने संजीदगी से जवाब दिया ” हां साहब ! एक जनाना और साथ में उसका आदमी है शायद ! ”
आलम ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए उसे वापस जाने और उस कार वाले को जल्दी से भेजने के लिए कहा । आलम के साथ ही खड़े सिपाही मुनीर के अधरों पर भी रहस्यमय मुस्कान तैर गयी थी । लेकिन इन सबसे बेखबर असलम अपने दरोगा का हुक्म पूरा करने में लग गया ।
असलम के साथ रमेश गाड़ी के कागजात लेकर दरोगा आलम के पास आया । इस बिच राखी गाड़ी में ही बैठी रही ।
कागजातों को उलटते पलटते आलम ने सरसरी निगाहों से रमेश की तरफ देखते हुए उससे पुछा ” और कौन है गाड़ी में ? ”
रमेश ने ससम्मान जवाब दिया ” और एक महिला है गाड़ी में । क्या हुआ साहब ? कागजात तो सब ठीक है न ? ”
आलम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया ” हाँ ! कागजात तो सब ठीक हैं लेकिन इसका क्या करें कि आज हमारी तबियत ठीक नहीं है । कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा । ”
रमेश उसकी बात को समझे बिना ही भोलेपन से बोल पड़ा ” तबियत ठीक नहीं है साहब तो थाने में जाकर आराम कर लो । ”
आलम एक खौफनाक हंसी हंसा और बोला ” बच्चे ! हम तो यही करते लेकिन ऊपर से आदेश है मुखबिर के मुताबिक एक गाड़ी में तस्करी का माल पास होनेवाला है और उसमें ड्राईवर के अलावा एक औरत भी हो सकती है । मिली हुयी सुचना के आधार पर वह गाड़ी तुम्हारी भी हो सकती है । इसलिए हमें तुम दोनों की और गाड़ी की भी तलाशी लेनी पड़ेगी । चलो ! ”
गाड़ी के समीप पहुंचकर थोड़ी देर उसने गाड़ी की तलाशी लेने का नाटक किया और फिर रमेश की तलाशी लेने लगा । तीनों सिपाही गाड़ी की अभी भी तलाशी ले रहे थे ।
उनकी खरीदी हुयी सारी चीजों को उलट पलट कर तहस नहस कर दिया गया ।
रमेश की तलाशी पूरी हो चुकी थी । अब आलम राखी की तरफ बढ़ा । उसका आशय समझ कर रमेश ने ऐतराज किया ” अरे साहब ! आप एक औरत की तलाशी कैसे ले सकते हैं ? इसके लिए आपको कोई महिला पुलिस साथ में रखनी ……..,”
अभी उसका वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि आलम का एक तेज झन्नाटेदार थप्पड़ रमेश के गाल पर पड़ा । उसे अपने आँखों से चिंगारियां सी निकलती हुयी महसूस हुयी । साथ ही उस वीराने में गूंज उठी आलम की वह सर्द आवाज ” अब समझ में आया हम एक औरत की तलाशी कैसे ले सकते हैं । अरे हाँ ! लेकिन हम तो भूल ही गए थे कि एक आदमी के सामने हम उसके औरत की तलाशी लें तो वह आदमी इसे कैसे बरदाश्त करेगा । इसलिए हम अब तुम्हारे सामने इसकी तलाशी नहीं लेंगे । ” कहते हुए वह राखी का हाथ पकड़ कर सड़क के किनारे उगी झाड़ियों के पीछे की तरफ खींचने लगा । राखी कातर निगाहों से रमेश की तरफ देखती उसका प्रतिरोध करती रही । अभी रमेश उसे बचाने के लिए उसकी तरफ बढ़ता कि तभी मुनीर ने अपने हाथ में पकडे डंडे का एक भरपूर वार रमेश के सर पर किया । राखी की कलाई हाथ में भींचे आलम ने रमेश को चीख कर गिरते हुए देखा और मुनीर को शाबाशी देते हुए बोला ” शाबास मुनीर ! तुमने एक सच्चे मुसलमान का फर्ज अदा किया है । इन काफिरों का यही अंजाम होना चाहिए । ”
लेकिन उसकी दशा से चिंतित मुनीर ने कहा ” लेकिन साहब ! कहीं यह मर गया तो ? ”
” अबे तो कौन सा हमें उसे जिन्दा रखना है । मर गया होगा तो ठीक है । हमें उसे मारना नहीं पड़ेगा । हम अपने खिलाफ सबूत को जिन्दा छोड़ देंगे ? ” कहते हुए आलम एक भयानक हंसी हंसा था । क्रूरता उसके चहरे पर झलक रही थी । ” अभी तो बस तू इस काफिरों की बेबसी का मजा ले । इन्हें तो हम आज ऐसा सबक सिखायेंगे कि फिर कोई काफिर मुसलमानों पर कोई अत्याचार करने से पहले सौ बार सोचेगा । चल आजा । आज तू भी अपने साहब के साथ एक काफिर की जवानी का मजा ले ले ” उसका साथ देने के लिए पहले से तैयार मुनीर आलम की तरफ बढ़ा ।