क्या क्या दिखाऊ क्या क्या छुपाऊ
कई आगें सुलग रही सीने में
कौन सी बुझाऊ
कई दर्द छुपे सीने में
कौन कौन सी दिखाऊ!
गमों में मन उलझा है
कौन सा गम भूलाऊ
तुमको भूलना चाहती हूँ
पर खुद को भूल गई !
जख्म इतने गहरे है
मरहम भी बेकार हुआ
मैं भँवर में फंस गई हूँ
और मुझ में मन !
— कुमारी अर्चना