“तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में”
तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में
साँसो की डोर है कि
टूटने का नाम नहीं लेती
तेरे दीदार को आँखे तरस रही
जैसे बारिश के लिए प्यासी धरती हो !
मेरा मन फिर से जीना चाहता है
ये आसमान में तितलीयों जैसा उड़ना चाहता है
पर संग जब तुम हो!
मेरा दिल प्यार करना चाहता है
फूलों जैसा महकना चाहता है
पर क्या करूँ तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में!
तुम बिन ये जिन्दग़ी कैसी
बस साँसों चलती है
सारी उमंगे,सारी तरंगे,सारी तमन्नायें
बुझ सी गई है
जैसे कि कोई राख हो
जैसे कि कोई राख हो !
कुमारी अर्चना