कविता

“तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में”

तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में
साँसो की डोर है कि
टूटने का नाम नहीं लेती
तेरे दीदार को आँखे तरस रही
जैसे बारिश के लिए प्यासी धरती हो !

मेरा मन फिर से जीना चाहता है
ये आसमान में तितलीयों जैसा उड़ना चाहता है
पर संग जब तुम हो!

मेरा दिल प्यार करना चाहता है
फूलों जैसा महकना चाहता है
पर क्या करूँ तुम जो नहीं मेरी जिन्दग़ी में!

तुम बिन ये जिन्दग़ी कैसी
बस साँसों चलती है
सारी उमंगे,सारी तरंगे,सारी तमन्नायें
बुझ सी गई है
जैसे कि कोई राख हो
जैसे कि कोई राख हो !

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना वर्तमान मे राजनीतिक शास्त्र मे शोधार्थी एव साहित्य लेखन जारी ! विभिन्न पत्र - पत्रिकाओ मे साहित्य लेखन जिला-हरिश्चन्द्रपुर, वार्ड नं०-02,जलालगढ़ पूर्णियाँ,बिहार, पिन कोड-854301 मो.ना०- 8227000844 ईमेल - [email protected]