इंसानियत — एक धर्म ( तृतिय भाग )
सिपाही यादव के पकड़ने के बावजूद असलम उसके काबू में नहीं आ रहा था । वह यादव को धकेल कर लगातार आलम पर वार पर वार किये जा रहा था और जब वह उसे मारते मारते थक गया उसके हाथ से डंडा फिसल कर निचे गिर पड़ा । अब उसे अपनी सही स्थिति का भान हुआ । अब तक राखी खुद को संभाल चुकी थी । आलम की गिरफ्त से छूटते ही वह जमीन पर निढाल पड़े रमेश की तरफ भागी थी । अँधेरे में भागते हुए वह किसी पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ी थी । लेकिन अपने दर्द की परवाह किये बिना वह रमेश के पास जा पहुंची थी । रमेश की अवस्था देखकर वह बदहवास सी हो गयी थी फिर भी उसने हिम्मत से काम लेने का प्रयत्न किया । उसके सर से खून निकल कर उसकी गर्दन के निचे का भाग खून से लाल हो गया था । राखी ने उसकी नाक के सामने उलटी हथेली रखकर उसकी साँसे चल रही हैं इसकी पुष्टि की । उसने अपने आसपास का निरिक्षण किया । उसकी गाड़ी सड़क पर ही एक किनारे खड़ी थी । कभी कभार कोई गाड़ी तेजी से जाती हुयी वातावरण की शांति को भंग कर देती । लेकिन किसी के पास इस सुनसान जगह पर खड़ी गाड़ी के बारे में पूछताछ करने का समय नहीं था । शायद बगल में खड़ी पुलिस की गाडी भी इन न रुकनेवाले गाड़ी वालों के भय का कारण हों । यही वह समय था जब असलम आलम को मार कर थक कर निढाल सा निचे बैठ गया था ।
राखी उठी और असलम की तरफ दौड़ पड़ी । उसके नजदीक पहुँच कर उसके कदमों में झुकती हुयी बिलख उठी ” भैया ! उनको बचा लो । उनकी साँसें चल रही हैं । अगर तुरंत इलाज शुरू हो गया तो शायद बच जाएँ । भैया ! बचा लो उनको ! मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूंगा । ”
उसे बिलखता देख असलम अपनी थकान भूल गया था । उसके सीर पर हाथ रखते हुए उसे सांत्वना दिया ” चुप हो जा बहन ! जब तक ये तेरा भाई खान जिन्दा है मैं तेरे शौहर को कुछ नहीं होने दूंगा । चल !.”
कहते हुए असलम बड़ी फुर्ती से पुलिस जीप की तरफ बढ़ा ।
उसके गाड़ी की तरफ बढ़ते ही यादव भी उसके साथ हो लिया था । असलम ने जीप स्टार्ट करके ठीक वहां खड़ी कर दिया जहाँ रमेश निचे पड़ा हुआ था । जीप रुकते ही यादव व असलम जीप से निचे उतरे और बेहोश रमेश के जख्मी जिस्म को उठाकर जीप की पिछली सीट पर लाद दिया । असलम ने रमेश की गाड़ी लॉक करके उसमें रखा पर्स उठाकर राखी को दे दिया उसका हाथ पकड़कर खिंच कर उसे जीप में बैठा लिया । थोड़ी ही देर में गाड़ी यू टर्न लेकर शहर की तरफ दौड़ रही थी ।
राखी सदमे की अधिकता के कारण कुछ सोच पाने में असमर्थ हो गयी थी सो आँखें बंद कर गाड़ी की पुश्त से सीर टीकाकर निढाल हो गयी । शायद उसके आंसू भी अब सूख चुके थे ।
असलम ने जीप सीधे शहर के जिला अस्पताल में रोकी और उतर कर दौड़ते हुए ही अति दक्षता विभाग की तरफ दौड़ पड़ा । वहां काउंटर पर जल्दी से मरीज के बारे में बताकर उनके जवाब का इंतजार किये बिना एक स्ट्रेचर लेकर उसे खींचता हुआ जीप तक आ गया । यादव की मदद से उसने रमेश को स्ट्रेचर पर लिटाया और भीड़ में से जगह बनाते उसे लेकर अति दक्षता विभाग के दरवाजे पर पहुँच गया ।
दो पुलिसवालों और उनकी वर्दी से प्रभावित हुए बिना वहां बैठे कर्मचारी ने उन्हें पहले मरीज को ले जाकर उसका रजिस्ट्रेशन करने के लिए कहा और फिर आने के लिए कहा ।
तभी यादव का परिचित एक डॉक्टर वहां से गुजरा । यादव ने उससे मिलकर उसे इस मामले में कुछ मदद करने की विनती की ।
वह सहृदय डॉक्टर प्रतीत हो रहा था । उसने स्ट्रेचर पर लेटे रमेश के बेहोश जिस्म का निरिक्षण किया और अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए उसे तत्काल अतिदक्षता विभाग में भर्ती करने का आदेश दिया ।
अस्पताल में दाखिला मिलते ही रमेश का विधिवत इलाज शुरू हो गया ।
रमेश अन्दर कमरे में शिफ्ट हो गया था । जबकि राखी वहीँ कमरे के बाहर रखी कुर्सियों में से एक पर बैठ गयी । वह शायद कुछ गंभीरता से सोच रही थी ।
तभी कमरे का दरवाजा खुला और उसमें से एक नर्स हाथ में एक पर्ची लिए बाहर निकली । उस पर्ची में जरुरी दवाइयां लिखी हुयी थी । राखी से बिना कुछ कहे यादव ने नर्स के हाथ से वह पर्ची ले ली और मेडिकल स्टोर की तरफ बढ़ गया । उसे जाते देख राखी ने उसे आवाज देकर उससे पैसे ले जाने के लिए कहा लेकिन यादव ने बड़ी विनम्रता से इनकार कर दिया और आगे बढ़ गया ।
राखी असहाय सी वहीँ बैठी रह गयी । अचानक जैसे उसे कुछ होश आया हो । वह अपना पर्स खोलकर देखने लगी । पर्स में उसका छोटा सा फोन सुरक्षित पड़ा हुआ था ।
फोन से अपने घर का नंबर मिलाते हुए उसकी आँखें छलक पड़ी थीं । बड़ी देर तक घंटी बजती रही थी और फिर उधर से किसी ने फोन उठाया ।
फोन शायद रमेश की माताजी ने उठाया था । उनकी महीन सी आवाज आई ” हेल्लो ! कौन बोल रहा है ? ”
उनकी चिर परिचित आवाज सुनकर राखी अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकी और बिलख पड़ी । किसी तरह उसके मुंह से सिर्फ ईतना ही शब्द निकला ” माँ …जी ! ” और फिर उसकी सिसकियाँ निकल गयी । अपनी बहु को यूँ सिसकते हुए जानकर सुषमा जी किसी अनिष्ट की आशंका से काँप उठी थी और बेतहाशा फोन पर हेल्लो हेल्लो की पुकार करने लगीं । उनकी घबराहट भरी आवाज सुनकर दयाल बाबु फोन की तरफ लपके । समीप ही खड़े असलम ने मौके की नजाकत को भांपते हुए राखी के हाथ से उसका फोन लेते हुए उधर से आनेवाली आवाज का जायजा लेने लगा । कुछ पल की ख़ामोशी के बाद उधर से दयाल बाबू की रोबदार आवाज आई ” हेल्लो ”
असलम ने सधी हुयी संयत स्वर में जवाब दिया ” नमस्कार ! मैं रामनगर पुलिस थाने का हेड कांस्टेबल असलम खान बोल रहा हूँ । आप मिस्टर रमेश जी के पिताजी हैं ? ”
उधर से आवाज आई ” हाँ जी ! बोल रहा हूँ । बोलिए क्या बात है ? ”
असलम ने जवाब दिया ” श्रीमान जी ! आपके लिए एक दुखद समाचार है । आपके बेटे और बहु की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी है जिसमें रमेश को गंभीर चोट आई है । उसका रामनगर के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है अगर आप आ जाएँ तो …….”
पूरी बात सुने बिना ही दयाल बाबु ने फोन काट दिया था और सुषमा को समाचार बताने लगे थे ।
रमेश उनका इकलौता सुपुत्र था । बहु के बार बार जिद्द करने पर वह अपनी पत्नी के साथ कुछ खरीददारी करने के लिए शहर गया हुआ था । और अब उसके दुर्घटना की खबर ने उन्हें अन्दर से झकझोर दिया था । लेकिन खुद को संभालते हुए वह शहर जाने की तैयारी करने लगे ।
उधर अस्पताल के बरामदे में खड़े सिपाही असलम ने वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी को अपनी तरफ आते देखकर उसे सब कुछ समझाने और बताने के लिए खुद ही उसकी तरफ बढ़ गया ।