कविता

मुश्किल दरवाजों से गुज़र

ज्ञान का एक असीम भंडार
मस्तिष्क
बस एक सोच ही होगी कुछ
क्लिष्ट
पग पग हृदय पथ दिखाता रहा
हाथ पकड़
एक यही जड़ न कर पाई कहीं
अपना घर
क्यों न अब कुछ एक दिन ऐसा
कर लें
इन पञ्च पटों की आभास ऐन्द्री
बन्द कर लें
काया को देते हुए तनिक विश्राम
माया को कह दें ले अल्प विराम
अचेतनता चेतना स्वतः ही भर लेगी
घुमड़ घुमड़ चतुर्दिक मधुबन कर देगी
बिना कोई अनुशासन आजमाए
नीति समझाए, नियम सिखाए
सुना तो होगा तुमने भी शायद
घुप्प अंधियारे में एक सितारा भी
पथ दिखला जाता है
मुश्किल दरवाजों से गुज़रकर ही
कोई तकदीर बुलन्द कर पाता है
प्रियंवदा अवस्थी©2014

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।