कविता

“अकेली जिन्दग़ी”

अकेली जिन्दग़ी भी कोई जिन्दग़ी है !

अपने साये से भी
घुटन होती है
अपनी लाश को खुद के ही कंधे पे ठोना है
पर कब तक ढोउँ इसको
मैं थक चुकी हूँ
अकेले चलते चलते

अकेली जिन्दग़ी भी कोई जिन्दग़ी है !

मैं तुम्हारे काँधे पर सिर रखके
हँसना और रोना चाहती हूँ
तुम्हारे सिने से लिपटकर
प्यार बहुत प्यार करना चाहती हूँ
तुम्हारे गोद मैं लेटकर
कुछ देर बेफ्रिक सोना चाहती हूँ
मिठ्ठी मिठ्ठी मोहब्ब़त की आहें भरना चाहती हूँ
मैं तुम्हारे संग अपनी बची खुची जिन्दग़ानी बिताना चाहती हूँ !

यदि तुम भी यही चाहते हो
जो मैं चाहती हूँ
तो आ जाओ मेरे पास
क्योंकि तुम बिन मैं अधुरी हूँ

अकेली जिन्दग़ी भी कोई जिन्दग़ी है!

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना वर्तमान मे राजनीतिक शास्त्र मे शोधार्थी एव साहित्य लेखन जारी ! विभिन्न पत्र - पत्रिकाओ मे साहित्य लेखन जिला-हरिश्चन्द्रपुर, वार्ड नं०-02,जलालगढ़ पूर्णियाँ,बिहार, पिन कोड-854301 मो.ना०- 8227000844 ईमेल - [email protected]