गीत/नवगीत

जब तुम हृदय विराजे

मंदिर मंदिर क्यो भटकूँ मैं
जब तुम हृदय विराजे
रग रग तन्मय प्रेम तुम्हारे
भाल तुम्ही हो साजे
नयन ज्योति आरती उतारूँ
मैं तुमपर सब हारी
तुम संग लगन लगी है जबसे
सुध बुध बिसरी सारी
आलिंगन जयमाल बना और
स्वासों धूप जलाऊँ
सुर मंजीरे हृदय थाप पर
मन मिरदंग बजाऊं
तन शाकल्य करूँ हवि-जीवन
परम चरम पा जाऊँ
मंदिर मंदिर क्यों भटकूँ मैं
प्रियंवदा अवस्थी©2013

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।