“कुंडलिया”
करती रही पिया पलक, देहरी इंतजार
पी तेरे आगोश में, खुशियों की रसधार
खुशियों की रसधार, मिलेगी मुझको जन्नत
किया निकाह कबूल, मांगती आई मन्नत
गौतम गरज गुहार, बलम मैं तुमसे डरती
राखहु दूर तलाक, अरज पिय प्रतिपल करती।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी