“मुक्तक”
शीर्षक- बेशर्म / बेहया / बेगैरत आदि
बेशर्मी की हद हुई, मानो मेरे मीत
देखों वापस ले रही, चाहत अपनी प्रीत
बेहया मतिन बोलना, बेगैरत की बात
अच्छाई की अलग है, सीधी सादी रीत।।-1
झांसे में आते रहे, भोले भाले लोग
याद रहे जब लौटते, दे जाते बड़ रोग
शोध सहन दिन रात हो, नेकी नौबत साथ
आसन वासन सब जुदा, झूठे भाषण भोग।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी