ग़ज़ल
बेसबब वह वफ़ा नहीं करते ।
खत मुझे यूँ लिखा नहीं करते ।।
है मुहब्बत से वास्ता कोई ।
उसके आँचल उड़ा नहीँ करते ।।
लूट जाते हैं जो मेरे घर को ।
गैर वह भी हुआ नहीं करते ।।
बात कुछ तो जरूर है वर्ना ।
तुम हक़ीक़त कहा नही करते ।।
न्याय बिकता है इस ज़माने में ।
बिन लिए फैसला नही करते ।।
वह गवाही भी बिक गई कब की ।
अब भरोसा किया नही करते ।।
जश्न लिखता हयात को बन्दा ।
जिंदगी से डरा नहीँ करते ।।
है भरोसा जिन्हें यहां खुद पर ।
वह खुदा से दुआ नहीं करते ।।
थोड़ी तहज़ीब भी जरूरी है ।
महफिलों से उठा नहीं करते ।।
और चेहरा खराब होता है ।
दाग ऐसे धुला नहीं करते ।।
पूछिये रात माजरा क्या था ।
यूँ ही काजल बहा नहीं करते ।।
टूट जाये कहीं न् दिल कोई।
इस तरह ख़त लिखा नहीं करते ।।
कुछ तो अय्याशियां रहीं होंगी ।
नाम यूँ ही मिटा नहीं करते ।।
है खुमारी तमाम चेहरे पर ।
कौन कहता नशा नहीं करते ।।
जो हिफ़ाज़त में हुस्न रखते हैं ।
रहजनों से लुटा नहीं करते ।।
–नवीन मणि त्रिपाठी