गीत
बनो विशाल वृक्ष से, जिन्दगी सँवारो तुम
लो सबक अतीत से भविष्य को सुधारो तुम
ज्योतिमा के भव्य दीप बनके तुम जल उठो
हो मनुज मनुजता के दुर्ग तुम नये गढो
तुम खिलो सुमन सदृश सुवास को बिखेरते
उद्योग के उद्यान को संवारते सहेजते
त्यागकर अहम को तुम लक्ष्य ओर बढ चलो
कदम रहे जमीन पर गगन को जब निहारो तुम
जियो कुछ इस तरह कि जिन्दगी चहक उठे
प्राण जो निष्प्राण है, जी उठे महक उठे
व्याष्टि और समिष्ट बीच प्रेम ही आराध्य हो
विश्व बन्धुत्व भाव जिन्दगी का साध्य हो
धरती के लाल सुन धरती की आर्तनाद
खो रही मानवता को फ़िर से पुकारो तुम