गीत/नवगीत

गीत

बनो विशाल वृक्ष से, जिन्दगी सँवारो तुम
लो सबक अतीत से भविष्य को सुधारो तुम

ज्योतिमा के भव्य दीप बनके तुम जल उठो
हो मनुज मनुजता के दुर्ग तुम नये गढो
तुम खिलो सुमन सदृश सुवास को बिखेरते
उद्योग के उद्यान को संवारते सहेजते
त्यागकर अहम को तुम लक्ष्य ओर बढ चलो
कदम रहे जमीन पर गगन को जब निहारो तुम

जियो कुछ इस तरह कि जिन्दगी चहक उठे
प्राण जो  निष्प्राण है, जी उठे महक उठे
व्याष्टि और समिष्ट बीच प्रेम ही आराध्य हो
विश्व बन्धुत्व भाव जिन्दगी का साध्य हो
धरती के लाल सुन धरती की आर्तनाद
खो रही मानवता को फ़िर से पुकारो तुम

सफलता सरोज

सफलता सरोज मां- जगदेई बाजपेयी/श्रीमती सरोज पिता- श्री मन्ना लाल शिक्षा- एम.ए. बीएड, एमएड, पीएचडी प्रकाशन- आज, अमरउजाला, पंजाब केशरी, कादम्बरी, वागर्थ, वीणा, लमही, परिंदे, इंडियन ग्लैक्सी, कोमा, नवनिकष, हैलो कानपुर, स्वतंत्र भारत, अक्षरा, बयान, सरस्वती सुमन, अभिव्यक्ति आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख कहानियों, कवितायें, साक्षात्कार का सतत प्रकाश्न संपादन- हमारे सपनों की उड़ान, नग्न मंच है नग्न नृत्य है, नवनिकष का नीरज विशेषांक, बयान का शिक्षा विशेषांक पुरस्कार- राष्ट्रभाषी, राष्ट्रगौरव, पत्रकारश्री की उपाधि पता- चैबेपुर, कानपुर नगर 201203 ईमेल - [email protected]