“गौरैया को बचाओं”
फूदक फदूक के घर आँगन में
ची ची ची चहकती जब गौरेया
नन्हें मुन्ने भागते इसके पीछे
आज हाथ से ना जाने देगें इसको
जैसे ही हाथों में आती
वैसे ही पलक झँपकते फुर्र
हो जाती !
फसलों में लगने वाले कीड़ों को खा
बढ़ती मानव जनसंखा का
सदा ही पेट भरती गौरेया !
सुख गए कुआँ,तालाब,बाबड़ी
नदियों का हो रहा जल विषैला
कहाँ अपनी प्यास बुझायें !
खेतों में धड़ल्ले से हो रहे
कीटनाशकों के छिड़काव
मोबाइल फोन व टावरों से
निकलते है सुक्ष्म तरंगें
नन्हीं सी चिडियाँ के अंडों को
कर देते गड़ढे
फिर कहाँ से आये गौरया !
भोजन की विकट समस्या खड़ी हुई
पेट्रोल जलने से निकलते धँऐ से
छोटे कीटों ने दम तोड़ दिया
जो कभी आहार हुआ करते थे उनके!
बाग बगीचे भी उपभोग की लालसा में कम हुए
आँगन,ओसरे व छज्जों के बिना बनने लगे घर अब तो
सुरक्षित बसेरा का सहारा भी छिन्न गए
पहले परिवार के सदस्य रूप में
रहती थी बेफ्रिक गौरया
दाना पानी की ना होती थी कोई चिंता !
पर अब संकट प्रजाति के रूप में
रेड सूची में दर्ज हुई गौरया
शहरों से तो लुप्त ही हुई
गाँवों में तो बचा लो गौरेया!
चहूँ ओर पेड़ पौधे लगाओ
अपने दिल को बड़ाकर
घर आँगन का द्वार खोलों
शिकारिओं से कानूनी रक्षा का अमली जामा पहनाकर साथ
जन जन जागरूकता अभियान चला कर
प्यारी सी गौरेया को बचा लों!
~ कुमारी अर्चना