“गज़ल”
काफिया- आनी, रदीफ- लिखेंगे
मापनी(बहर)-122 122 122 122 ( दिलों की मुकम्मल कहानी लिखेंगे)
गए तुम कहाँ छड़ निशानी लिखेंगे
बचपना बिरह की कहानी लिखेंगे
अदाएं उभर कर बढ़ाती उम्मीदें
जिसे आज अपनी जुबानी लिखेंगे॥
सुबह नित उठाती जगाती हँसाती
जतन मात करती मय सुहानी लिखेंगे॥
दुवा दिल दिलेरी दुपहरी चकोरी
हठीली दुलारी नादानी लिखेंगे॥
उछलती मचलती अदाएं निगाहें
किनारें तलहटी पुरानी लिखेंगे॥
न कोयल थी काली न भौंरा दिवाना
चहकती चिरैया उड़ानी लिखेंगे॥
उड़ी चंहक गौतम फिरफिर न आए
तितलियां पकड़ना विरानी लिखेंगे॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी