मेस वाला लड़का
वो मेस वाला लड़का ,जो खाना लेकर आता है।
मेरे मन में वो ढेरो सवाल छोड़ जाता है ।
अभी उमर उसकी क्या होगी?
दस ,बारह या तेरह ,
यही उमर तो होती है पढ़ने लिखने की ।
वो मेस में बेचारा है रोटियाँ बनाता,
यही उमर है भावी जीवन के बनने की।
उसके उमर के लड़के तो पढ़ने जाते हैं,
वो कमरे कमरे तक खाना पहुँचाता है ।
वो मेस वाला लड़का………………..
कोई मजबूरी थी या स्वेच्छा से आया ?
यह सवाल हर रोज मुझे कोंचा करता है ।
चायनीज मोबाइल से गाने सुनता है,
उसकी अपनी दुनिया है-
वो खुश रहता है ।
कई बार मैंने उससे ,पूछा भी है-
कि ऐ छोटू!
तू पढ़ने क्यों नही जाता है ?
हम जो चले गये तो –
आपको खाना कौन खिलायेगा
चट से उसका नपा तुला उत्तर आता है ।
उसको शायद यह कोई मजाक लगता है,
तेरी उमर अभी पढ़ने की सुन करके मुस्काता है।
वो मेस वाला……………………….
जननेताओं के थोथे-
वादों का क्या अचार डालूँ ?
या शिक्षा अभियानों को मैं,
दे कर जहर मार डालूँ ?
मेस वाला लड़का –
तो केवल ,एक नमूना है,
बाल श्रमिक हर रोज खेप के खेप निकलते हैं।
बात दूर है भावी जीवन के बनने की,
क्षुधा अग्नि मे तो लाखों बचपन जलते हैं।
रूपा आज भी रुपयों के बदले ब्याही जाती है,
आज भी होरी बिन गोदान के मर जाता है ।
वो मेस वाला…………………………….
——–डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी