कविता

“ना तुम ना तुम्हारी आभास आकृतियाँ”

 

यहाँ भी वहाँ भी
जहाँ भी देखती हूँ
वहाँ तुम ही तुम नज़र आते हो
ये मेरी नजरों का धोखा है
या मन का भ्रम!

उड़ते बादलो में
चलती हवाओं में
बहती नदियों में
लहराते खेतों में
खिलते फूलों में
उड़ते पक्षियों में
तुम नज़र आते हो !

मेरे आसपास गुजरते लोंगों में
रास्ते पर चलते मुसाफिरों में
घर आते जाते महमानों में
तुम्हारा ही चेहरा ढूँढती हूँ
पर कहीं भी तुम पहचान में नहीं आते
घूप में आती परछाई सी गायब हो जाते हो !
मैं तुम्हारे पीछे बच्चों जैसी मैं तितली समझकर दौड़ती हूँ
और औंधे मुँह गिर जाती हूँ !

मैं तुम्हारी आभास आकृतियों को कैद करना चाहती हूँ
सदा के लिए अपना बना रख सकूँ
कुछ भी तो नहीं मेरे पास ना तुम ना तुम्हारी आभास आकृतियाँ !

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना

कुमारी अर्चना वर्तमान मे राजनीतिक शास्त्र मे शोधार्थी एव साहित्य लेखन जारी ! विभिन्न पत्र - पत्रिकाओ मे साहित्य लेखन जिला-हरिश्चन्द्रपुर, वार्ड नं०-02,जलालगढ़ पूर्णियाँ,बिहार, पिन कोड-854301 मो.ना०- 8227000844 ईमेल - [email protected]