वुसतुल्लाह ख़ान के नाम भारत से एक चिट्ठी
प्यारे वुसतुल्लाह ख़ान हमेशा सलामत रहो. मैं पिछले काफी सालों से आपको पढ़ा देखा जाना लेकिन मुझे नहीं पता पाकिस्तान समेत दुनिया भर के 56 मुस्लिम देशों में जहाँ हर रोज मानवता रोज शर्मशार होती हो वहां आपका ध्यान सिर्फ भारत में ही क्यों रहता है. या तो आप उन्हें इन्सान नहीं समझते या फिर आपके मानवतावादी पाठ के वहां इंसानों की तरह चितडे उड़ते है.
उम्मीद है अभी आप सठियाये नहीं होंगे न भूले होंगे कि पिछले दिनों आपने एक हिन्दुस्तानी बच्ची गुरमेहर कौर के नाम चिट्ठी भेजी थी. जिसमें आपने लिखा था आप उनकी बेटी जैसी हो. आपने आगे लिखा था कि लोग सौ-सौ साल जी कर भी नहीं समझ पाते जो तुम 19 साल की उम्र में ही समझ गई कि जंग कोई किसी नाम से लड़े जंग सिर्फ जंग होती है और इसमें भारतीय या पाकिस्तानी से पहले इंसान और धर्म से पहले इंसानियत मरती है.
आपकी चिट्ठी पढ़कर मुझे भी अच्छा लगा कि पुरे पाकिस्तान में एक आदमी है जिसकी गिनती में इंसानों की कतार में कर सकता हूँ जो कि वहां बहुत छोटी है. आपकी चिट्ठी के बाद में उस दिन से आपकी दूसरी चिट्ठी कुलभूषण जाधव के परिवार के लिए भी बाट जोह रहा हूँ . तुम दुनिया के लिए शांति के पैगाम के डाकिया हो तो सोचा कुलभूषण के परिवार के लिए भी तुम उतनी ही एक मर्मस्पर्शी चिठ्ठी भेजो. उस परिवार को भी बताओं उनके जिगर के टुकड़े को फांसी की सजा किस ने दी? तुम घबराना मत इस इस चिट्ठी के बाद आपको भारत से जितनी दुआएं मिलेगी उससे दुगने पाकिस्तान से जूते मिलेंगे और आपकी चिट्ठी को उठाकर बवाल उठाने वालों और इस बवाल को कपड़ा बना कर आपनी राजनीति की फर्श चमकाने वालों से घबराना नहीं, क्योंकि हर नए पैगाम हर नई बात हर नए नजरिए का ऐसे ही विरोध होता है. बड़ी सच्चाई विरोध के पन्ने पर ही तो लिखी जाती है.
हर बड़ा आदमी अकेले ही सफर शुरू करता है पत्थर खाता है, गिरता है उठता है और एक दिन उंगलियों में दबे पत्थर गिरने शुरू हो जाते हैं और सिर झुकते चले जाते हैं.
खान साहब तुम्हें क्या बताना कि मोहब्बत और ईमानदारी अंदर होती है और नफरत और बेईमानी बाहर से सिखाई जाती है. इस कारण मैं भी चाहता हूँ आप भी गुरमोहर की तरह इतिहास घोल के पी लेना. खान साहब जर्मनी, अमरीका और जापान की दुश्मनी कैसे खत्म हुई ये तुम जानते हो.
एक कहानी आपने अपने इतिहास की गुरमोहर को सुनाई थी. चलो मैं तुम्हें अपने इतिहास से एक कहानी सुनाता हूं कभी हमारे स्कूलों में ये कहानी पढ़ाई जाती थी, हमने 17 बार गोरी को माफ किया 4 बार तुम्हारे पाकिस्तान को. हमने तुम्हारे 90 हजार सैनिको को भी इज्जत के साथ रिहा किया. आप एक कुलभूषण पर फैसला नहीं ले पाए. आपने हजरत अली की कहानी सुनाई थी मैं आपको इमाम हूसैन की सुनाता हूँ जिसे राजा दाहिर ने शरण दी थी. लेकिन अब ये कहानी नहीं पढ़ाई जाती क्योंकि राष्ट्र को अब हमारे दिल नर्म करने की नहीं बल्कि तुम्हारे प्रति दिल सख़्त करने की जरूरत आन पड़ी है.
मुझे अच्छा लगता आप जिस शिद्दत से कश्मीर का रोना रोते है उतनी ही शिद्दत से एक आंसू बलूचिस्तान पर भी टपकाते. हमारी गुरमेहर को चिट्ठी भेजने के बजाय बलूचिस्तान की हर एक उस बेटी उस माँ को भी चिट्ठी भेजते जिनके 18 हजार भाई और बेटे पाक आर्मी ने गायब कर रखे है. आप ही थे जो दादरी में अखलाक पर सबसे ज्यादा रोये थे. आप ही थे जो हिंदुस्तान को इंट्रोलेंस कहने से जरा भी नहीं चुके थे अब आपके वतन के एक शहर मरदान की खान अब्दुल वली खान यूनिवर्सिटी के 23 वर्षीय छात्र मशाल खान को उसी के साथ पढ़ने वाले छात्रों ने इस शक में मार डाला कि उसने इस्लाम की तौहीन की है.
आपको अकलाख की मौत पर दुःख हुआ था उतना ही दुःख आज मुझे मशाल खान की मौत पर है आखिर कैसे गोली मारे जाने के बाद मशाल के शव को घसीटा गया, उस पर डंडे बरसाए गए. इस कारनामे में सिर्फ हजार-पांच सौ गुस्साए छात्र ही नहीं थे बल्कि यूनिवर्सिटी के कई लोग भी आगे-आगे थे. अब आप किस मुंह से भारत में गोरक्षकों की दनदनाहट पर लिखोंगे? चलो यहाँ तो कुछ लोग गाय के ठेकेदार बने है लेकिन आपके यहाँ तो हर कोई खुदा का ठेकेदार बना है. मुझे उम्मीद है अब आप एक चिट्ठी मशाल खान के परिवार को भी लिखोंगे जैसे आपने गुरमेहर को बताया था कि उसके पिता को पाकिस्तान में नहीं बल्कि जंग ने मारा था अब मशाल खान के परिवार को भी बताना की उनके बेटे की मौत का जिम्मेदार कौन है?
राजीव चौधरी